________________
विषे ए आग्मी ढाल एवी रीते स्तवी, माटे जो जव्यो ! तमे ( सुरतरु के०) कल्पवृक्ष समान | मनोवांछितनी देवावाली एवी श्रीसिद्धचक्रजी महाराजनी नक्ति करो, एम श्रीविनय विजय उपाध्यायजी कहे ते ॥४१॥
॥ चोपाइ॥ खंड खंड मधुरो जिम खंड, श्रीश्रीपालचरित्र अखंड ॥
कीर्तिविजय वाचकथी लह्यो, बीजो खंड श्म विनये कह्यो ॥१॥ अर्थ-ए रासनो खंग खंड ( मधुरो के० ) मीगशवालो ने, जेम ( खंग के० ) खांमना कटका, कटका मांहे मीठाश घणी होय तेम ए रासना पण खंग खंममां मीगश घणी बे,अने श्री श्रीपाल राजानुं संपूर्ण चरित्र तो अखंग रूप में, ते जे प्रमाणे श्री कीर्ति विजय उपाध्यायजीना मुखथी। ( लह्यो के०) सांजस्यो (एम के० ) एज प्रमाणे आ बीजो खंड श्री विनयविजयजी उपा-1 ध्यायजीए कह्यो ॥१॥ ॥ इति श्रीमन्महोपाध्यायश्रीकीर्तिविजयगणिशिष्योपाध्यायश्रीविनयविजयगणिविरचिते श्रीसिझचक्रमहिमाधिकारे श्रीश्रीपालचरित्रे प्राकृतप्रबंधे विदेशगमने कन्याम्य
पाणिग्रहणेत्यादिवर्णनो नाम द्वितीयः खंमः समाप्तः ॥२॥ प्रथम खंडे गाथा ॥ २२ ॥ द्वितीय खंडे गाथा ॥ २७५ ॥ सर्व गाथा ॥ ५५॥
इति श्रीश्रीपालचरित्रे बालावबोधे द्वितीयः खंडः समाप्तः ॥२॥
Jain Educationa interational
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org