Book Title: Shripal Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 381
________________ वर उत्रीश गुणे करी सोदे, युगप्रधान जन मोदे ॥ जग बोदे न रदे खण कोदे, सूरि नमुं ते जोदे रे ॥ नविका ॥ सिचक्र ॥१२॥ नित अप्रमत्त धर्म उवएसे, नहीं विकथा न कषाय ॥ जेदने ते आचारिज नमीए, अकलुष अमल अमाय रे॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥ १३ ॥ अर्थ-वली आचार्य केवा ? तो के ( वर के०) प्रधान एवंा पंचेंजियना निग्रह आदिक है उनीश गुण जे आचार्यना डे तेणे करी शोने दे. वली युगप्रधान पदवीना धरनार, छादशांगीना जाण, सर्व जनने मोह पमामनार तथा (जग बोहे के० ) सर्व जगतना जनने बोधे, एटले प्रतिबोध श्रापवामां समर्थ, तथा (न रहे खण कोहे के० ) एक क्षणमात्र पण जे क्रोधमा रहेता नथी, एटले दणमात्र पण क्रोध धरता नथी, एवा (सूरि के०) श्राचार्य, तेने (जोहे के0) परखीने हुँ नमुंडं ॥ १२ ॥ वली (नित के) निरंतर नव्य जीवने उपकारबुछिए शुछ अप्रमत्त धर्मनो उपदेश आपे , केमके प्रमाद जे बे ते जीवने संसारमा पर्यटन करावनारो , माटे प्रमादने पूर करी अप्रमादपणे प्रवर्त्तताने अंतर्मुहर्त्तमां संसारनो जय मटी जाय. तथा वली राजकथा, देशकथा, नोजनकथा अने स्त्रीकथा, ए चार प्रकारनी विकथा अथवा सम्यक्त्व ढील-13 हाणीया अने चारित्र ढीलणीया, ए बे प्रकारनी विकथा, ते जेने करवी नथी, सर्वदा चारित्र अने सम्यक्त्वनी पुष्टिज करे , तेमज सोल कषाय अने नव नोकषाय, ए पचीश कषाय जेने नथी, वली सर्वदा शुद्ध आचार पालवाने तत्पर रहे जे ते आचार्यने नमीए. ते केवा ने ? तो के अकबुष एटले मोलाशपणुं अर्थात् कलुष नाव तेणे करी रहित, तथा श्रमल एटले को प्रकार, श्रझामां मलिनपणुं जेने नथी, तथा अमाय एटले कपट, माया, ईर्ष्या अने मत्सर, तेणे रहित ॥१३॥ Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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