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श्रीतीर्थकर निर्वाणपद पाम्या पनी ( केवलचंदे के० ) केवल ज्ञानना धारक सामान्य केवलीरूप]8 चंडे करी जगतमा प्रकाश रहे, अने जे वारे केवली नगवानरूप चंद्रमानो प्रकाश न होय ते । वारे (जे जगदीवो के०) जगतने विषे मिथ्यात्वरूप अंधकार दूर करवाने दीपक समान जे थाचार्य प्रजुले तेज प्रकाशकर्ता ने, एटले जगतमां अज्ञानरूप अंधकारना प्रसारने दूर करवा माटे श्रीश्राचार्य जे ने ते दीपक समान बे, माटे ते नुवनपदारथ एटले त्रण जुवनना पदार्थने 8 प्रगटन एटले प्रगट स्पष्ट (पटु के०) चतुराश्थी कहेवाने ते समर्थ डे, एवा श्रीश्राचार्य नगवान् ते ( चिरं जीवो के० ) घणा काल लगे विद्यमान रहो. ए रीते प्रामाविक शासनना शोनाकारक श्रीश्राचार्यजीनी स्तुति श्रीपाल राजा करे ३ ते पांच गाथाए कही ॥१५॥
छादश अंग सजाय करे जे, पारंग धारक तास ॥ सूत्र अरथ विस्तार रसिक ते, नमो उवकाय उल्लास रे॥नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥१६॥ अर्थ सूत्रने दानविनागे, आचारय उवकाय ॥ लव त्रणे लदे जे शिवसंपद,
नमीए ते सुपसाय रे॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥१७॥ अर्थ-हवे पांच गाथाए करीने श्रीउपाध्यायपदनी स्तवना करे जे. जे श्रीश्राचारांगादि कादश अंग एटले बार अंग दे तेनुं सद्याय ध्यान निरंतर करे ले तथा ए छादशांगी जे गणि पिटक तेना अर्थना पारंगामी , अने तेना रहस्यना धारणहार , वली सूत्रथी तथा अर्थथी ते छादशांगीनो विस्तार करवाने रसिक थका पोते नणे, बीजाने जणावे, एवा श्रीउपाध्यायजीने उदास है। सहित एटले चित्तना हर्षथी नमो एटले नमस्कार करो ॥ १६ ॥ जे सूत्र अने अर्थरूप ज्ञानदाननी वहेंचणने विनागे श्रीआचार्यजी जे तीर्थकरनी पेरे अर्थनुं दान करे, अने उपाध्यायजी
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ॐ
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