Book Title: Shripal Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 385
________________ रति, कषायरूप अहितना करनारा तापे तप्त थ रह्या ने तेमने वावनाचंदनना रस सदृश शीतल वचने करीने शीतलता उपजावी तेऊना श्रहितरूप सर्व तापने टाले, अने सर्वने शीतलता उपजावे, ते उपाध्यायने नमीजे. वली जे श्रीजिनशासनने अजुश्राले बे एटले उद्योत करे बे. ए| रीते पांच गाथाए करी श्रीनपाध्यायपदनी स्तुति करी ॥ २० ॥ जिम तरुफूले नमरो बेसे, पीमा तस न उपाये ॥ लइ रसने आतम संतोषे, तिम मुनि गोचरी जाये रे ॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥२१॥ पंच इति ने कषाय निरंधे, षटकायक प्रतिपाल ॥ संयम सत्तर प्रकारे आराधे, वंडं तेह दयाल रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥॥ अर्थ-हवे पांच गाथाए करी साधुपद वर्णवे . जेम को सुगंध वृक्षनां फूल , तेनी वास-12 नाए आग्रहतो नमरो श्रावी बेसे , पण ते नमरो फूलने पीमा न उपजावे, ते फूलमांथी थोमोक लइने फरी बीजा फूले जश्ने ते फूलनो रस लीए, एम थोमो थोडो रस लश्ने पोताना ६ श्रात्माने संतोषे, पण फूलने किलामणा उपजावे नहीं, तेम मुनिराज पण गोचरीए जाय ते वारे वेंतालीश दोष रहित शुद्ध थाहार जोश्ने फरी फरीने घरघरथी थोमी थोमी जिदा लावे, तेथी गृहस्थने पण अंतराय न थाय, कोइ किलामणा न उपजे, अने साधु पण संयममार्गनो निर्वाह करवाने श्रर्थे आहार लइ निरस त्याज्य तुब थाहारे करी आत्मानो पोष करे ॥२१॥ वली साधु केवा ? तो के जे पंचेंघिय श्रने चार कषायने निरुंधे ने पागंतरे (पंचेंजिने जे नित्य | जीते के०) पांच इंजियने जे नित्य एटले निरंतर कीपे, तथा पृथ्वी श्रादिक बकायना जीवोनी रदा करे , माटे तेना प्रतिपालन करनारा जाणवा. तथा सत्तर प्रकारे संयमने आराधे. ते | दयाल एटले दयावंत महामुनिने हुँ वाउं बुं ॥ २५ ॥ CACCIACOCOCALCRACCASIOCLOCALCIEOS JainEducationainternational For Personal and Private Use Only www.sainelibrary.org

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