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तेने सर्व जिल्ब मली पूवा लाग्या के तुं क्यां गयो हतो ? ते वारे तेणे कर्दा के हुँ नगरमां है गयो हतो. तेमणे पूज्यु के तिहां खावा पीवान मलतुं हतुं ? तथा नगरनां स्थानक केवा हतां ? वस्त्र केवां हतां ? एम पूबवा लाग्या, पण ते नि तेमने कांश कही शके नहीं, पोते, मनमां सर्व जाणे, पण समजावी शके नहीं, ए दृष्टांते. तथा जेम कोश्क मुंगाने गोल खवरा-18 वीने तेनो स्वाद पूबीए तो ते संझाए बतावे, पण कही शके नहीं, तेम श्रीसिझनां सुखने पण ( उपमा विण जव मांहे के०) जगत माहे कोई चीजनी उपमा दश्ने वर्णन करी शकाय| नहीं. ते सिद्धनां सुखने ( नाणी के ) केवलझानी पुरुष जाणे खरा, पण तेनुं मुखश्री वर्णन करी शके नहीं, एवा सुखनो अनुनव करनारा जे श्रीसिक नगवान् ते मुजने उल्लास प्रत्ये श्रापो ॥ ए॥ ___ ज्योतिशुं ज्योति मिली जस अनुपम, विरमी सकल उपाधि ॥ आतम
राम रमापति समरो, ते सि सहज समाधि रे॥लविका॥सिक्ष्चक्र०॥२०॥ अर्थ-वली सिक केवा ? तो के जेनी ज्योति मांहे ज्योति मली रही . एक सिझनी 12 अवगाहना मांहे (अनुपम के० ) जेनी उपमा आवेज नहीं एवी अनंता सिझनी ज्योति दीप-10 कने दृष्टांते मली रही , एटले जेम एक उरमा मांहे एक दीवानो प्रकाश समाश् रह्यो , तेमां वली बीजा अनेक दीपक करीए तो तेनो प्रकाश पण तेमांज समा जाय, ए दृष्टांते जाणवू. वली संसार संबंधी सकल उपाधि विरमी ने एवा तथा जेमना आत्माना मूल गुण सादात् प्रगट थया ने, माटे आत्मारामरूप ने ( रमा के०) मोक्षलक्ष्मी तेना (पति के०)। स्वामी एवा जे सिझ तेने ( समरो के ) स्मरण करो. ते सिझ सहज स्वगुणरूप समाधिनुं |
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