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श्री राण दशानी बहुल दोडथी परपरिणतिमां विशेष रमण हतुं, माटे तप धर्म न उलख्यो, तेथी मन खम. ४
श्रादिकनी एकाग्रताए अनुपम नाव सहित पूजा उदय आवी नहीं. ते अनुपम नाव मुजने श्राजश ॥२६॥
संध्याए परमेश्वरनी पूजा करतां श्राव्यो हतो. आज परचक्रनी चिंतामां मुजने ए वातनो अनुभव जाग्यो, तेनुं लक्षण आगली गाथाए करी कहे , ते निजा परहरीने धारजो ॥६॥
तदगतचित्त समयविधान, नावनी दिनवनय अति घणो जी॥
विस्मय पुलक प्रमोद प्रधान, सदण ए ने अमृतक्रिया तणो जी॥७॥ । अर्थ-एक तो ( तदगतचित्त के ) जे क्रिया करतो होय तेज क्रियानो उपयोगी होय, परंतु
केप जे मननी व्यग्रता तप क्षेपक दोषादि युक्त न होय, बीजो ( समय विधान के ) आगमने है विषे जे वेलाए जे विधि करवानो कह्यो , ते वेलाए तेज करवा योग्य शुन्न क्रियाविधान करतो होय, त्रीजो तत्समयोचित क्रिया करतो होय, तेमां (नावनी वृद्धि के ) चित्त उससित थाय, परिणामधारानी पुष्टि थाय, चोथो लव जे संसार तेनो अत्यंत घणोज जय उपजे, एटले जन्मनां उःखनी, जरानां पुःखनी बीक लागे, इत्यादिक नय उपजे, पांचमो ( विस्मय के) चमत्कार उपजे, एटले तत्समयोचित क्रियामां अति पुष्टतर साध्यनी कारणता देखी चित्तमां अप्राप्त ! |परे चमत्कार पामे, उहो ( पुलक के०) रोमोजम होय, एटले पुष्ट कारण प्राप्त थवाथी अत्यंत हर्ष उपजे, अने अथिर संसारमणजयश्री रोमोजम थाय, सातमो (प्रमोद के०) महादर्ष 8! थाय, थात्मिक सुखानुजव होय, जेम थांधलाने नेत्रनो लान थयेथी तथा सुनटने शत्रु जीतवाश्री जेवो प्रमोद थाय, तेथी पण अधिक प्रमोद समयोचित क्रिया करवामां थाय. ए सर्व अमृत- ॥२६॥ क्रियानां (प्रधान के० ) मुख्य लक्षणो बे, एटले चिह्ने अमृतक्रिया जाणीए. ए क्रिया श्ह लोक ! अने परलोके अवश्य फलदायक होय, एटले निश्चे फलदायक होय ॥ उक्तं च ॥ सहजो नाव-15
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