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श्रीराक्यां एक सोनाना थालनी शोना ! तथा क्या कोजाना धान्यनुं जोजन श्रने क्या कपूर समान खंग.४
उज्ज्वल कूरनुं जोजन ! तथा क्यां कूशकाना ढोकलानुं जोजन अने क्यां घृतना पूरे सहित घेव-13 ॥१३॥
रनुं जोजन ! ॥ ६ ॥ वली क्यां शून्य वगमानी शोना अने क्यां श्राराम एटले वाडी बगीचानी शोला ! वली क्यां ते अन्यायी राजाउँ अने क्यां श्रीरामचंजजी जेवा न्यायवंत राजा ! तथा क्यां वाघनुं बल अने क्यां बाग एटले बोकमानुं बल ! वली क्यां दयामय धर्म अने क्यां वली | याग जे पापारंज सहित यधर्म ! ॥७॥
किहां जूठ ने किदां वली साच,किहां रतन किहां खंडित काच ॥सादिव०॥ चढते उठे ठे श्रीपाल, पडते तुम सरिखा नूपाल ॥ साहिब० ॥७॥ जो तुं नवि निज जीवित रुह, तो प्रणमी करे तेहज तुझ ॥ सादिब० ॥
जो गर्वित ने देखी रऊ, तो रण करवा थाये सज ॥ साहिब० ॥ ए॥ अर्थ-वली क्या ते जूठ बोलनारो श्रने क्यां सत्य नाषण करनारो ! तथा क्यां ते रत्ननी शोना 2 अने क्या काचना कटकानी शोना ! तो हे राजन् ! था श्राटलां गं जे में तमोने कह्यां, ते माहे जे चडतां गं कह्यां तेवो तो श्रीपाल राजा जाणवो, अने जे पडतां उंग कह्यां ते समान 8 तमारा सरखा राजा जाणवा. इहां चोथी गाथाश्री आठमी गाथा सुधीनी पांच गाथामां खाटां वचन कह्यां ने ॥ ७॥ हवे कटु वचन कहे जे के हे राजन् ! जो तुं तारा पोताना जीवितव्य ॥१३५॥ उपर रुष्ट थयो न हो तो यावीने श्रीपालने प्रणमीने तेनेज (तुके) संतुष्ट कर, अथवा
श्रीपाल राजाने प्रणाम कर तो तेज पोतानी मेले तारा उपर संतुष्ट थशे, अने जो तुं ( रजाई ४०) राज्य देखीने गर्वित बो तो रण एटले संग्राम करवाने ( सऊ के०) सावधान थाजे ॥॥8॥
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