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श्रीराम कहे के ए नव पदने जे रुमी रीते गाय ते प्राणी ( शुद्ध देशी के० ) विशुद्ध निर्मल लेश्यानो खम.४
धणी थश्ने सर्व शकि पामे ॥१॥ ॥१४॥
॥दोहा॥ अजितसेन चिंते कह्यु, अविमास्युं में काज ॥ वचन न मान्युं दूतनुं, तो न रही निज लाज ॥१॥ आप शक्ति जाणे नहीं, करे सबलशुं जुऊ ॥ सुदितवचन माने नहीं, आपे पमे अबुझ॥॥ किदां वृक्षपणे हुं सदा, परजोह करवा पाव ॥ किहां बालपण ए सदा, परनपकार स्वन्नाव ॥३॥ गोत्रजोद कीरति नहीं, राजद नवि नीति ॥ बालोद सद्गति नहीं,
ए त्रणे मुज नीति ॥ ४॥ अर्थ-हवे अजितसेन राजा चिंतवे के में अविमास्यं एटले श्रण विचाऱ्या कारज कर. प्रथमधीज पूतनुं वचन मान्यु नहीं, तो मारी लाज रही नहीं ॥१॥ जे प्राणी पोतानी शक्ति जाPणतो नथी अने बलवंत साथे युद्ध मांडे , अने सुहितवचन ते रुडुं हितनुं वचन अथवा जला
हितचिंतक वडेरा पुरुषोनुं वचन माने नहीं, ते अबुझ प्राणी पोते पाठो पडे ॥२॥ जुन के क्या ६ तो हुँ वृक्षपणे सदा सर्वदा परसोहरूप पापनो करनारो ! अने क्यां ए श्रीपाल के जे बालपणाथीज
सदा सर्वदा उपकारनो खन्नाव राखे ! माटे मारा वृक्षपणाने धिक्कार ने अने धन्य बे ए श्रीपा-16 लना बालपणाने ! के जे इजी लगण पण मने कहे जे के हे पिताजी !नूमिसुख जोगवो अने । अने खेद म करो ॥३॥ वली शास्त्रमा कर्वा डे के जे गोत्रमोद करे तेनी कीर्ति न होय अनेInten जे राजमोह करे तेणे न्याय नवंध्यो, माटे ए नीति नहीं, तथा बालमोह करवाथी साति पामे 8 नहीं, माठी गतिए जाय, एत्रणे कार्य में कस्यां , तेनी मुजने (नीति के०) बीक डे ॥४॥
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