Book Title: Shripal Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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पालतो विरतिनी एटले गृहस्थ व्रतधारी तथा यति चारित्रीयानी अन्न वस्त्रादिके करी अव्यथी नक्ति करे, तथा लावधी स्तुति वंदनादिक करे. एम निश्चलताए एकांत यतिधर्मनो रागी थको| चारित्रधर्मने आराधे ठे ॥ १३ ॥
तजी श्चा इद परलोकनी, दुइ सघले अप्रतिवः६॥ मेरे ॥षट् बाह्य अभ्यंतर षट् करी, आराधे तवपद शु६॥ मेरे ॥ मननो० ॥१४॥ उत्तम नव पद व्य नावथी, शुज नक्ति करी श्रीपाल ॥ मेरे ॥आराधे सिचक्रने, नित पामे मंगलमाल ॥ मेरे ० ॥ मननो० ॥२५॥ इम सिक्ष्चक्रनी सेवना, करे साडा चार ते वर्ष ॥ मेरे॥ दवे उजमणाविधि
तणो, पूरे तप नपनो हर्ष ॥ मेरे ॥ मननो० ॥१६॥ अर्थ-हवे नवमा तपःपदनी नक्ति करे नेते कहे बे. ते इहलोक तथा परलोकनी इछा तजी सर्व स्थाने अप्रतिबद्धपणुं श्रादरी कर्म तपाववाने अर्थे शक्ति प्रमाणे उ प्रकारे वाह्य तप तथा 5
प्रकारे अत्यंतर तप करी "तपसा दीयते कर्म” इत्यादि वचन , माटे शुकपणे तपःपदनु । आराधन करे ॥ १४॥ एम उत्तम नव पदने ऽव्यथी तथा जावधी ए बे प्रकारे नली नक्ति। करीने श्रीपाल राजा श्रीसिकचकने आराधे . तिहां ऽव्यथी पूजानां उपकरण प्रमुख अने नावथी श्रात्मवीर्योबास युक्त श्राराधन करतो थको नित्य प्रत्ये मांगलिकनी माला पामे जे ॥ १५॥ |एम साडा चार वर्ष सुधी सिद्धचक्रनी सेवना करे, ते नव पदनुं तप जे वारे पूर्वं थयुं ते । वारे श्रीपाल राजाने उजमणानो विधि करवानो हर्ष उपन्यो, तेथी वीर्योवासपूर्वक उजमगुं| करवा मांड्युं ॥ १६ ॥
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