Book Title: Shripal Rajano Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 366
________________ श्री राम ॥१०॥ करी पूरी थ. श्रीजिननो विनय कस्याथी, नलो जश कह्याथी तप जक्तिए करी पगले पगले खंग.४ कल्याण होय ॥ १७॥ ॥दोहा॥ नमस्कार कदे एहवा, दवे गंजीर उदार ॥ योगीसर पण जे सुणी, चमके हृदय मकार ॥१॥ अथ श्री सिक्ष्चक्रनमस्कारः ॥ कवित्त ॥ जो धुरि सिरि अरिहंत, मूल दृढ पीठ पनि ॥ सिह सूरि उवकाय, साहु चिहुं पास गरिजि ॥ दसण नाण चरित्त, तवदि पडिसादा सुंदरु ॥ तत्तकर सरवग्ग, लघि गुरु पयदल उंबरू ॥ दिसिवाल जक जकिणि पमुद, सुर कुसुमेहिं अलंकि ॥ सो सिचक गुरु कप्पतरु, अम्ह मनवंबिय फल दी ॥२॥ __ अर्थ-हवे ते श्रीपाल राजा श्रीसिद्धचक्र श्रागल गंजीर उदार वचने करी नमस्कार कहे जे. जे सांजलीने योगीश्वर सरिखा पण हृदय मांहे चमत्कार पामे ॥१॥ ते श्रीसिकचकने नम-11 |स्कार करतां कल्पवृक्षनी जपमा श्रापे के (जो धरि के) जेने धुरमा श्रीअरिहंतनी स्थापना | ते सिद्धचक्ररूप कल्पवृक्षनी दृढ मूल पीठिकानुं प्रतिष्ठान ने एटले स्थानक , अने सिक तथा सूरि, उपाध्याय अने साधु, ए चार पद, ते चारे पासे तेने (गरिहिउ के०) मोटी| | शाखारूप , वली दर्शन, ज्ञान, चारित्र अने तप, ए चार पदरूप जेने (पमिसाहा के०) प्रतिशाखा ते सुंदर लघु शाखारूप में, एटले मोटी शाखामांथी जे नीकले ते प्रतिशाखा जाणवी.18 वली तत्त्वावर ते व तत्त्वादर ते जे झी प्रमुख बीजादर तथा (सरवग्ग के०) खर अदरनो वर्ग जे समूह Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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