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॥१५॥
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मय जे लीला, तेने (.सूचे के०) सूचवे , एटले जणावे . अर्थात् जेवी तमारी बाह्य थकी। उपशम रसनी लीला देखाय ने तेज अंतरमा तमारं चित्त पण उपशम रसमयज . श्हां को पूजे जे बाह्य इंगिताकार देखीने अंतरमां पण तेवोज परिणाम हशे, एम तमे शा उपरथी जाणो| बो ? कदापि बहारनी मुसा तो सुंदर देखो बो, पण अत्यंतरमा दोष सहित दशे तो ? एम|8|
बनारने दृष्टांतपूर्वक उत्तर थापे के के जो (तरुथर के० ) वृक्ष तेने (अंतरचारी के०) अंत-14 सारंग वचाले थडमां कोटर मांहे ( दहन के०) अग्नि जस्यो होय तो पड़ी ते वृक्ष बहारथी पण
केवी रीते नवपश्वव थकुं ( सोहतो के०) शोजतुं देखाय ? अर्थात नज देखाय.तेम तमारा अंतर माहे जो उपशम लीला न होय तो बाह्याकारे पण समतामय मुसा क्याथीज होय ? माटे हुँ जाणुं बु जे बाह्य थकी तमारी मुषा गुणवंती देखाय , तो अंतरंगमां पण तमे उपशम गुणे करी संभृत बो, तेथी सुगुण पुरंदर बो ॥ ११॥
वैरागी त्यागी तुं सोनागी ॥ वि०॥ तुज शुन्न मति जागी नाव नांगी मूलथी॥ वा ॥ जगपूज्य तुं मारो पूज्य के प्यारो ॥ वि० ॥ पदेलां
पण नमीयो दवे उपशमीयो आदस्यो॥वा० ॥१३॥ al अर्थ-वली हे खामिन् ! तमे वैरागी एटले रागरहित बो. वली तमे बाह्य अने अत्यंतर एवा बे 2
प्रकारना संयोगना त्यागी बो. तिहां बाह्यथी तो स्त्री, पुत्र, धन, धान्यादिक परिग्रह, तेथी रहित 8 बो, अने अंतरंगथी क्रोधादिक कषाय जे राग द्वेषादिक योग तथा अविरति, मिथ्यात्वथी रहित | Smun
बो, माटे त्यागी बो. वली तमे सौजाग्यवंत बो. वली हे ऋषीश्वर ! तमने नली मति जे रुमी लीबकि ते जाग्रत थश, थने कुमतिनो नाश थवाथी सुमतिनुं राज्य थयु, तेथी जवन्त्रमणपरंपरा-1
दिकनी जे नावठ हती ते नांगी गइ, एटले तमारे जवनो हठ तथा जवनी अनादि स्थिति तथा
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