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कुमरीकला आगे हुश, कुंअर तणी कला ॥ हो लाल के ॥ कुंअर ॥ चंदकला रवि आगे, ते गश ने बाकला ॥ दो लाल ॥ ते ॥ लोकप्रशंसा सांनली, वामन आवीयो॥दो लाल के ॥वामन ॥ कदे कुंमलपुरवासी, जलो जन नावीयो॥ दो लाल ॥नलो० ॥२५॥ कुंअरी संकी तेण, वीणा दीए तसु करे ॥ हो लाल ॥ वीणा ॥ कहे कुमार अशुभ , ए वीणा धुरे ॥ हो लाल के ॥ए ॥ वीण सगर्नने दाधो, दंड गले ग्रां ॥ दो लाल के ॥ दंग ॥ तुंबड तेण अशु६,-पणुं में
तस कह्यं ॥ दो लाल ॥ पणुं ॥१६॥ अर्थ-जेम ( रवि के ) सूर्यनी आगल चंडमानी कला निस्तेज देखाय दे, तेम राजकुंवरी नी कला आगल कुंवरोनी कला ते गश बाकला जेवी थक्ष गइ, एटले नहीं जेवी थक्ष गइ. ए प्रमाणे | लोकोनां मुखथी कुंवरीनी प्रशंसा थती सांजलीने वामनोजी तिहां आव्या, तेने जो वज्ररति बोल्यो के आ कुब्ज तो कुंमलपुरना वासी जनोने नलो जावीयो देखाय ॥ २५॥ दवे राजकुंवरीए तो जाणे प्रथमथी तेनी साथे संकेतज कस्यो होय नहीं ? तेम (तसु के० ) ते कुवमाना| (करे के० ) हाथमां पोतानी वीणा आपी, ते वीणा जोश्ने कुंवर बोल्यो के (धुरे के० ) प्रथम तो ए वीणाज अशुद्ध , केमके ए वीणाना तुंबमानो गर्न पूरोपूरो नीकल्यो नधी, कांश्क मांहेली कोरे रही गयेलो , माटे ए वीणा ( सगर्न के) गर्न सहित बे, श्रने वली ए वीणानो दंड जे जे ते अरण्यमां दग्ध थयेवू जे वृक्ष हतुं ते वृदनुं काष्ठ कापीने बनावेलो ने, माटे ( दाधो 4 के) दग्ध थयेलो, बखेलो , तेथी (गले ग्रह्यु के०) गळ ग्रहवाणुं , ते पकडाइ जाय ,
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