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खंग.३
श्रीरा सा चिंते मुज एद, प्रतिज्ञा पूरशे ॥ दो लाल ॥ प्रतिज्ञा० ॥ सफल ॥१०॥
जनम तो मानशुं, उर्जन कुरशे॥ दो लाल के ॥ उर्जन ॥ जो एदथी नवि नांजशे, मन, आंतरं ॥ दो लाल के ॥ मननुं० ॥ करी प्रतिका वयर, वसाव्युं तो खरं ॥ हो लाल ॥ वसाव्युं० ॥ २३ ॥ दाखे गुरु आदेशे, निज वीणाकला ॥ हो लाल के ॥ निज ॥ जाम कुमार कुमार, समा मद आकला ॥ दो लाल ॥ समा० ॥ ताम कुमारी देखावे, निज गुण चातुरी॥ हो लाल के ॥ निज ॥ लोके जाख्युं अंतर, ग्राम ने
सुरपुरी॥ दो लाल के ॥ ग्राम ॥२४॥ . अर्थ-हवे ( सा के) ते राजकुंवरी श्रीपाल कुंवरने जोश्ने पोताना मनमां चिंतवे बे के मारी। जे प्रतिज्ञा करेली ले ते जो एज पुरुष पूर्ण करशे तो हुं मारो जन्म सफल थयो एम मानीश, अने जे जे मारा उर्जनो हशे ते सर्वे फुरता रहेशे, अने जो आ पुरुषथी मारा मन- आंतरं| नहीं नांगे तो पठी थावी प्रतिज्ञा करीने में जगतमा खरेखलं फोकट वेरज वसाव्युं एम जाणवू MIn २३॥ हवे (जाम के) जे वारे गुरुनो आदेश पामीने (कुमार के०) सर्व राजकुमारो ते
( कुमार समा के०) महादेवना पुत्र कार्तिकस्वामी सरखा मदे करी श्राकला थश्ने उतावलथी पोतपोतानी वीणाकला देखावा लाग्या, ( ताम के०) ते वारे कुंवरीए पण पोताना गुणनी चतुरा बतावी. ते जोर सजाना लोके एवं कडं के कुंवरीनी अने राजकुमारोनी वीणा-18 कलामां तो ग्राम अने सुरपुरी जेटबुं अंतर , एटले किहां तो एक नानुं सरखं गामडुं ! अने, किहां देवलोकमां इंजनी नगरी ! ए बेहुमां परस्पर जेटबुं अंतर ने तेटलुं अंतर कुमारोनी अने कुंवरीनी वीणाकलामां ॥२४॥
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