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पापी शेठ वाध्यो. एम ते शेठने काम अने लोज, ए बे ( पिशाच के० ) नूत आवीने वलग्यां, तेणे करीने अत्यंत घणोज पीडाय बे, तेथी ते धवल शेग्नुं चित्त पण पोताने वश रह्यं नहीं ॥१॥
उदक न नावे अन्न, न आवे निमी रे ॥ न आवे ॥ उल्लस वालस थाय, के जक नहीं एक घडी रे ॥ के जक ॥ मुख मूके निसास, के दिन दिन उबलो रे ॥ के दिन ॥रात दिवस नवि जाय, के मन बहु
आमलो रे ॥ के मन ॥२॥ चार मल्या तस मित्र, के पूरे प्रेमशुंरे॥ के पूरे ॥कोण थयो तुम रोग, के कुरो एम शुं रे ॥ के कुरो ॥ के चिंता उतपन्न, के कोश्क आकरी रे॥के कोश्क० ॥ नाइ था धीर,
के मन काटुं करी रे ॥के मन ॥३॥ अर्थ-तेम ( उदक के०)पाणी तथा अन्न पण जावतुं नथी, वली निशा पण आवती नथी, उसस वालस एटले थालस विलस थया करे ,एक घडी मात्र पण जीवने(जक के०) जंप वलतो नथी,मुखथी। |निसासा मूकतो थको दिवसे दिवसे पुर्बल थतो जाय . वली मनमां बहु (धामलो के०) श्रामलसेरडा 8 लीधा करे बे, तेनां रात दिवस जतां नथी ॥ यतः ॥ प्रवासिको व्याधियुतः सरोषो, विद्यार्थचित्तः परदाररक्तः ॥ यस्यास्ति वैरी हि वियोगितोऽपि, ह्यष्टौ लजंते मनुजा न निमाम् ॥ अर्थ-एक पर-2 |देश फरनार, बीजो व्याधिमान्, त्रीजो क्रोधयुक्त, चोथो विद्याच्यासने विषे तत्पर, पांचमोधन मेलववामां आसक्त चित्तवालो, बहो पारकी स्त्रीमां थासक्त, सातमो जेने माथे पुश्मन ते, थाउमो 8 |पोताना प्रिय जनथी वियोग पामेलो, एवा आठ प्रकारना मनुष्यो निखाने पामता नथी॥१॥२॥ एम फुःखने लीधे धवल शेठ अर्धी रात्रे सुतो उठी टलवलतो फस्या करे डे, ते जोश्ने ।
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