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डुंब कहे स्वामी सुणोरे, करस्यां ए तुम काम रे॥चतुर॥ मुजरो दमारो मानजो दो लाल॥केलवशुंकूडी कला रे, लेशुं परग्यां दाम रे॥चतुर॥ साबाशी देजो पड़े दो लाल ॥३॥डुंब मती सवि ते गया रे, राय तणे दरबार रे॥ चतुर ॥ गाये उन्ना घूमता हो लाल ॥राग आलापे टेकशुं रे,रीज्यो राय अपार रे ॥ चतुर ॥ मागो कांश मुख म कदे दो लाख ॥४॥ डुंब कहे अम दीजीए रे, मोहत वधारी दान रे॥चतुर ॥मोदत अमे वांबु घणुं दो लाल ॥ तव नरपति कुंअर कने रे, देवरावे तस पान रे ॥ चतुर ॥तेदनुं मोहत वधारवा दो लाल ॥५॥ पान देवा जव आयीयो रे, कुंअर तेदनी पास रे ॥चतुर ॥ दसित वदन जोतो इसी दो लाल ॥ वडो डुंब विलगो गले रे, आणी मन नल्लास रे ॥ चतुर ॥
पुत्र आज नेट्यो नले दो साल ॥६॥ अर्थ-ते सांजली डुंब कहेतो हवो के हे स्वामिन् ! ए तमारुं काम अमे करशुं, पण अमारो | मुजरो मानजो, ए अमे कूमी कला केवलशुं अने पड़ी तमारी साथे परतेलां (दाम के०) नाणां 31 लश्शु, पाउलथी वली साबाशीनो सिरपाव पण अमने श्रापजो ॥ ३ ॥ एम कही ते सर्व डुंब है। मलीने राजाने दरवारे गया. तिहां गोंखनी नीचे घूमता उना थका टेक सहित रागनी श्रालापचारी। करीने मधुर खरे गावा मांड्युं, तेथी राजा पण गीत सांजली पार विनानो तेमना उपर रीज्यो, अने मुखथी कहेतो हवो के कांश मागो, ते हुं श्रापुं ॥ ४॥ ते सांजली डुंब कहेवा लाग्या के हे| वामिन् ! अमने महत्त्व वधारण दान आपो, कारण के अमे मान महत्त्वनेज घणुं श्लीए बीए.
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