Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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तृतीयः सर्गः मंगलाचरणम्- नौमि वृषभनामानं जिनं संजितकल्मषं ।
पुराणपुरुषं रम्यं केवलज्ञान भास्करं ॥ १ ॥ नृपचिंता- अर्थकदा निजे चित्ते चितयन्निति मागधः ।
एतेषां बहुपुत्राणां कस्मै राज्यंददाम्यहं ॥ २ ॥ वचनबद्धता- इति चित्ते चिरं राजा वितळ चिरचिंतकः ।
स्मरंश्चिलातकी पुत्र राज्यं पूर्वप्रदत्तकं ॥ ३ ॥ नैमित्तिकं समाहूय पप्रच्छेति नराधिपः ।
तदैकांते कलाकीर्णो राज्यदत्तिविचितकः ॥ ४ ॥ वार्तालाप प्रश्न-निमितशास्त्रवेत्तस्त्वं विज्ञातार्थमहामते ।
ज्ञातज्योतिष्कशास्त्रार्थ कथयस्व मनोगतं ॥ ५ ॥ एतेषां मम पुत्राणां राज्यभोक्ता भविष्यति । को मध्ये वद शीघ्रत्वं विचार्य विधिवत्पुनः ॥ ६ ॥ संविचार्य चिरं चित्ते निमित्तज्ञान कोविदः । अष्टांगनिनिमित्तैश्च मत्वा प्रोवाच सगिरा ॥ ७ ॥ भो भूप ! शृणु राज्यस्य योग्यं पुत्रं वदाम्यहं ।
मत्त्वा समस्तवृत्तांतं सर्वशास्त्रपरायणः ॥ ८ ॥ समस्त कर्मों से रहित, प्राचीन, मनोहर, अखण्ड केवलज्ञानरूपी सूर्य के धारक, प्रथम तीर्थंकर श्री वृषभदेव भगवान को मैं मस्तक झुकाकर नमस्कार करता हूँ।
अनन्तर इसके महाराज मगधेश्वर उपश्रेणिक के मन में इस प्रकार की चिन्ता हुई कि मेरे बहुत-से पुत्र हैं इनमें से मैं किस पुत्र को राज्य का भार दूं? इस प्रकार अतिशय दूरदर्शी महाराज उपश्रेणिक ने इस बात को चिरकाल तक विचार कर, और इस बात को भी भलीभाँति स्मरण कर कि तिलकवती के पुत्र चलातकी को मैंने राज्य दे दिया है। किसी ज्योतिषी को एकान्त में बुलाकर पूछा
हे नैमित्तिक ! तू ज्योतिष शास्त्र का जाननेवाला है इस बात को शीघ्र विचार कर कह कि मेरे बहुत-से पुत्रों में राज्य का भोगनेवाला कौन पुत्र होगा?
___ महाराज की इस बात को सुनकर ज्योतिविद नैमित्तिक अष्टांग निमित्तों से भलीभाँति महाराज के प्रश्न को विचारकर बोला महाराज मैं ज्योतिषशास्त्र के बल से "आपके पुत्रों में से राज्य का भोगनेवाला कौन-सा पुत्र होवेगा" कहता हूँ आप ध्यान लगाकर सुनिये ॥१-८॥
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