Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 316
________________ श्रेणिक पुराणम् ३०३ पदार्थं नवभिः सार्द्ध सधामव्रतमुत्तममं । अनगारव्रतं चाख्यद्भगवांस्तं विशेषतः ॥१५३॥ प्रश्नतो नृपतेश्चाख्यत्त्रिषष्टिनरगोचरं । पुराणं पूरितं पुण्यविस्तीर्ण. तत्थकथानकैः ॥१५४॥ अन्यो यो द्वापरश्चित्ते नाशयामासतः नृपः । भगवद्वाक्यतो दीपादंधकारो निकेतने ॥१५॥ इस प्रकार भगवान महावीर को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर और गौतम गणधर को भी भक्तिपूर्वक सिर नवाकर महाराज श्रेणिक मनुष्य कोठे में बैठ गये। एवं धर्मरूपी अमृत पान की इच्छा से हाथ जोड़कर धर्म बाबत कुछ पूछा--महाराज श्रेणिक के इस प्रकार पूछने पर समस्त प्रकार की चेष्टाओं से रहित भगवान महावीर अपनी दिव्य वाणी से इस प्रकार उपदेश देने लगे राजन् ! सकल भव्योत्तम ! प्रथम ही तुम सात तत्वों का श्रवण करो। सातों तत्व सम्यग्दर्शन के कारण हैं और सम्यग्दर्शन मोक्ष का कारण है। वे सात तत्व जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष हैं। जीव के मूल भेद दो हैं नस और स्थावर । स्थावर पाँच प्रकार हैं-पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति। ये पाँचों प्रकार के जीव चारों प्राण वाले होते हैं। और इनके केवल स्पर्शन इन्द्रिय होती है। ये पाँचों प्रकार के जीव सूक्ष्म और स्थल के भेद से दो प्रकार के भी कहे गए हैं। और ये सब जीव पर्याप्त अपर्याप्त और लब्ध्य पर्याप्त इस रीति से तीन के प्रकार भी हैं। पृथ्वी जीव के चार प्रकार हैं-पृथ्वी काय, पृथ्वी जीव, पृथ्वी और पृथ्वी कायिक । इसी प्रकार जलादि के भी चार-चार भेद समझ लेना चाहिये। आदि के चार जीव धनांगुल के असंख्यात वे भाग शरीर के धारक हैं। वनस्पति काय के जीवों का उत्कृष्ट शरीर परिमाण तो संख्यातांगुल है और जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग हैं। शुद्ध तर पृथ्वी जीवों की आयु बारह हजार बर्ष की है। जल जीवों की बाईस हजार वर्ष की है। तेज कायिक जीवों की सात हजार और तीन वर्ष की है। एवं वायु कायिक जीवों की तीन हजार और वनस्पति कायिक जीवों की उत्कृष्ट आयु दस हजार वर्ष की है। विकलेन्द्रिय जीव तीन प्रकार के हैं। दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय और चौ इन्द्रिय । संज्ञी और असंज्ञी के भेद से पंचेन्द्रिय भी दो प्रकार हैं। पंचेन्द्रिय जीव, मनुष्य, देव, तिर्यंच और नारकी भेद से भी चार प्रकार के हैं। नारकी सातों नरक में रहने के कारण सात प्रकार के हैं । तिर्यंचों के तीन भेद हैं-जलचर, स्थलचर, और नभचर । भोग भूमिज और कर्म भूमिज के भेद से मनुष्य दो प्रकार के हैं । जो मनुष्य कर्म भूमिज हैं वे ही मोक्ष के अधिकारी हैं। देव भी चार प्रकार के हैं। भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भवनवासी दस प्रकार हैं-व्यत्तर आठ प्रकार, ज्योतिषी पाँच प्रकार और वैमानिक दो प्रकार हैं। इस प्रकार संक्षेप से जीवों का वर्णन कर दिया गया है । अब अजीव तत्व का वर्णन भी सुनिये। www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only Jain Education International

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