Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 373
________________ ३६० श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् प्रहेलिका कहकर माता का आनन्द वढ़ायेगी। कोई पूछेगी, बताओ माता-शरीर का ढंकने वाला कौन है ? चन्द्र मंडल में क्या है ? और पाप की कृपा से जीव कैसे होते हैं ? माता उत्तर देगी-॥३६-६॥ अंते किं देहिनां नूनं कामिना कि विधीयते । कीदृशो ध्यानतो योगी समादिश मम प्रिये ॥६६॥ "विनाशः विलाशः विपाशः" अमरप नर तर समजपर, भगतमददममयजन घननतक। प्रमदनवन घनदहन कनर प, जय जय तव वर जठरभपरम ।। ६७ ॥ "एकस्वरचित्रम्" शुभेद्यजन्मसंतानसंभवं किल्विषं धनम् । प्राणिनांभ्र णभावेन विज्ञानशतपारगे ॥ ६८ ॥ "क्रियागुप्तकम्" आनंदयंतु लोकानां मनांसि वचनोत्करैः । मातः कर्तृपदं गुप्तं वद भ्रूण विभावतः ॥ ६ ॥ “कर्तृ गुप्तकम्" सुधामनयसंपन्ना लभंते किनगः क्वचित । स्वकर्मवशगा भीमे भवे विक्षिप्तमानसाः ॥ ७० ॥ “कर्मगुप्तकम्" समस्यापूरणे मातः समस्यां वद वादिनी । भ्रूणप्रभावतस्तूर्णं मुनिर्वेच्यायते सदा ॥ ७१ ।। नगर्थं लोकयत्येव गृहीत्वार्थं विमुंचति । धत्ते नाभिविकारं च मुनिबेश्यायते सदा ॥ ७२ ।। कथयस्व समस्यां त्वं वल्लीवेश्यायते सदा । अपगं भिन्नपद्मन धरायां संगतं नभः ॥ ७३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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