Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
शंखारवो भावनधाम्नि सुंदरे,
भेरीरवो व्यंतरपत्तनेऽखिले । सिंहारवो ज्योतिषिमेघसन्निभो,
घंटा रवो नाक निकायकेऽजनि ॥८३ ॥ ज्ञात्वा च जन्म जिनपस्य सुरेंद्रवर्ग,
आरुह्यमानमभितः प्रथमेश्वरोऽपि । ऐरावतं गजवरं मुखदंत रम्यं,
संरुह्य देवनिकरैश्च चचाल शच्या ॥८४ ॥ आगत्य तस्य नगरं सुरराजपत्नी,
वेगादरिष्टसदनं सुरराजदेशात् । संप्राप्य वीक्ष्य जिनपं जननीसमेतम्,
संतत्य गूढवपुषा स्तुतिमाततान ॥ ८५॥ संयोज्यतां च शयने तसुजं विकृत्य,
मायामयं च विनिवेश्य सुशिय्यकायां । आदाय तं जिनपतिं सुरराजपत्नी,
निर्गत्य वासवकरे समदात् प्रक्षहृष्टा ।। ८६ ॥
सभा विभा अभाः
कुमारियाँ फिर पूछेगी बता माता-जीवों का अन्त में क्या होता है ? कामी लोग क्या करते हैं ? ध्यान के बल से योगी कैसा होता है ? माता उत्तर देगी-(१) विनाश, (२) विलास, (३) विपास। कोई कुमारी क्रिया गुप्त श्लोक कहकर माता से पूछने लगी, बता माता
(१) शुभेद्य जन्म सन्तान सम्भवं किल्विषं धनम् ।
प्राणिनां भ्र णभावेन विज्ञान शत पारगे॥
इसमें क्रिया कौन है कोई कहने लगी, बता माता
(२) आनन्दयन्तु लोकांनां मनांसि वचनोत्करैः।
मातः कतृपदं गुप्तं वदभ्रूण विभावतः ।।
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