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________________ ३६२ श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम् शंखारवो भावनधाम्नि सुंदरे, भेरीरवो व्यंतरपत्तनेऽखिले । सिंहारवो ज्योतिषिमेघसन्निभो, घंटा रवो नाक निकायकेऽजनि ॥८३ ॥ ज्ञात्वा च जन्म जिनपस्य सुरेंद्रवर्ग, आरुह्यमानमभितः प्रथमेश्वरोऽपि । ऐरावतं गजवरं मुखदंत रम्यं, संरुह्य देवनिकरैश्च चचाल शच्या ॥८४ ॥ आगत्य तस्य नगरं सुरराजपत्नी, वेगादरिष्टसदनं सुरराजदेशात् । संप्राप्य वीक्ष्य जिनपं जननीसमेतम्, संतत्य गूढवपुषा स्तुतिमाततान ॥ ८५॥ संयोज्यतां च शयने तसुजं विकृत्य, मायामयं च विनिवेश्य सुशिय्यकायां । आदाय तं जिनपतिं सुरराजपत्नी, निर्गत्य वासवकरे समदात् प्रक्षहृष्टा ।। ८६ ॥ सभा विभा अभाः कुमारियाँ फिर पूछेगी बता माता-जीवों का अन्त में क्या होता है ? कामी लोग क्या करते हैं ? ध्यान के बल से योगी कैसा होता है ? माता उत्तर देगी-(१) विनाश, (२) विलास, (३) विपास। कोई कुमारी क्रिया गुप्त श्लोक कहकर माता से पूछने लगी, बता माता (१) शुभेद्य जन्म सन्तान सम्भवं किल्विषं धनम् । प्राणिनां भ्र णभावेन विज्ञान शत पारगे॥ इसमें क्रिया कौन है कोई कहने लगी, बता माता (२) आनन्दयन्तु लोकांनां मनांसि वचनोत्करैः। मातः कतृपदं गुप्तं वदभ्रूण विभावतः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002771
Book TitleShrenika Charitra
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size18 MB
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