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श्रेणिक पुराणम्
इसमें तीन कर्त्ता कौन हैं ? कोई कहने लगी, बता माता
(३) सुधी मनयं संपन्ना लभन्ते किंनराः क्वचित् । स्वकर्म वशगा भीमे भवे विक्षिप्त मानसाः ॥
इसमें कर्म क्या है ?
कोई-कोई कुमारी कहने लगी- माता ! तुम समस्या पूर्ण करने में बड़ी चतुर हो। इस समय तुम गर्भवती भी हो " मुनिर्वेश्यायते सदा" इस समस्या की पूर्ति करो। माता 'जवाब दिया
(४) नरार्थ लोक यत्येय गृहीत्वार्थं विमुंचयति । धत्ते नाभिविकार च मुनिवेश्यायते सदा ।।
(१) इसमें दो अवखंडने धातु का लोट के मध्यम पुरुष का एक वचन 'द्य' क्रियापद है ।
(२) लोगों के मन, बचनों से आनन्द को प्राप्त हों । हे माता इसमें कर्तृ पद गुप्त है गर्भ के प्रभाव से आप कहें ।
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(३) इस श्लोक में मनासिक कर्त्ता है।
(४) विक्षेप चित्त युक्त, कर्मों के वशीभूत और नीति-रहित मनुष्य क्या संसार में कहीं उत्तम बुद्धि के धारक हो सकते हैं ? कदापि नहीं ।
इसमें सुधी कर्त्ता है ।
(५) जो मुनि पर धन की ओर देखता रहता है, धन लेकर धनी को छोड़ देता है और नाभि विकारयुक्त होता है वह मुनि वेश्या के समान होता है ।
दूसरी कुमारी बोली- माता ! वली वेश्यायते सदा ? धरायां संगतं नभः । इन दो समस्याओं की पूर्ति जल्दी करो ।
माता ने जवाब दिया
(१) स्वपुष्पं दर्शयत्येय कुलीना सुपयोधराः । मधुपैरचुंव्य माना च वली वेश्यायते सदा ॥१॥ (२) पानीये बालिशैनूंनं धरास्ते प्रतिबिम्बितम् ।
दृश्यते च शुभाकारं धरायां संगतं नभः ॥ २ ॥ (३) दूरस्थैर्दूरतो नूनं नरं विज्ञान पारगैः । इस्यते च शुभाकारं धरायां संगतंनभः ॥ ३ ॥
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