________________
श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
कोई कुमारी माता से यह कहेगी, शुभ लक्षणों का आकर, मृगनयनी! प्रिय वादिनी! नियम से आपके गर्भ में किसी पुण्यवान ने अवतार लिया है। माता यह झूठ न समझो क्योंकि जो मनुष्य पक्षपाती और पूज्यों का वंचन करते हैं संसार में वे अनेक कष्ट भोगते हैं। इस प्रकार समस्त कुमारियाँ तीनों काल हृदय से माता की सेवा करेंगी और तीर्थंकर चक्रवर्ती नारायण प्रति नारायण वासुदेव आदि महापुरुषों की कथा कहकर माता का मन आनन्दित करेंगी। प्रायः स्त्रियों के गर्भ के समय वृद्धि आलस्य तन्द्रा वगैरह हुआ करते हैं किंतु माता के गर्भ के समय न तो उदर वृद्धि होगी, न आलस्य और तंद्रा होगी मुख पर सफेदाई भी न होगी। जब पूरे नवमास हो जायेंगे तब उत्तम योग में और उत्तम दिन चन्द्रमा लग्न और नक्षत्र में माता उत्तम पुत्ररत्न जनेगी। उस समय पुत्र के शरीर की कांति से दिशा निर्मल हो जाती है।
भवनवासियों के घरों में शंख शब्द होने लगेंगे। व्यंतरों के घरों में भेरी बजेगी। ज्योतिषियों के धर मेध ध्वनि के समान सिंहासनरव और वैमानिक देवों के घर घंटा शब्द होंगे। अपने अवधि बल से तीर्थंकर का जन्म जान देवगण अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर अयोध्या आयेंगे। प्रथम स्वर्ग का इन्द्र भी अतिशय शोभनीय ऐरावत गज पर सवार हो अपनी इन्द्रानी के साथ अयोध्या आयेगा। अयोध्या आकर इन्द्रानी इन्द्र की आज्ञा से शीघ्र ही प्रसूति घर में प्रवेश करेगी। वहाँतीर्थंकर को अपनी माता के साथ सोता देख उनकी गूढभाव से स्तुति करेगी। माता को किसी प्रकार का कष्ट न हो इसलिये इन्द्रानी उस समय एक मायामयी पुत्र का निर्माण करेगी और उसे माता के पास सुलाकर और भगवान को हाथ में लेकर इन्द्र के हाथ में देगी। भगवान को देख इन्द्र अति प्रसन्न होगा ॥६६-८६॥
आरोप्य तं निज करे मघवा गजस्थः,
संसेवितः सुर वरैर्जयवृदवादी । ईशानशक्रधृतरम्यवरातपत्रं,
__ शक्रद्विकर्ललित चामरवीज्यमानं ।। ८७ ॥ आकाशमार्गमवलंब्य विमच्य तर्ण,
ज्योतिर्गणं सुरागिरि क्षणतः समाप । सत्पांडुपकं वर वनं वर पांडुकायां,
__मारोपयज्जिनपति सुरपः शिलायां ।। ८८ ॥ क्षीरोदधेश्च पयसा परिपूर्णकुंभ,
रष्टाधिकैर्दशहतक शताभि संख्यैः । अस्नापयज्जिनपति सुरपः सकृच्च शेषः,
सुरैः सहजयारव वादिभिश्च ॥८६॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org