Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
इस प्रकार सर्वथा दुःखप्रद चतुर्गतिरूप संसार में चारों ओर दुःख ही दुःख भरा हुआ है। रंचमात्र भी सुख नहीं । इस रीति से चिरकालपर्यन्त विचारकर रानी चेलना भवभोगों से सर्वथा विरक्त हो गई और शीघ्र ही भगवान महावीर के समवशरण की ओर चल दी । समवशरण में जाकर रानी ने तीन प्रदक्षिणा दीं, भक्तिपूर्वक पूजा और स्तुति की और यतिधर्म का व्याख्यान सुना पश्चात चंदना नाम की आर्यिका के पास गई। अपनी सासू को भक्तिपूर्वक नमस्कार कर अनेक रानियों के साथ शीघ्र ही संयम धारण कर लिया ।
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चिरकाल तक तप किया। आयु के अन्त में संन्यास लेकर और ध्यानबल से प्राण परित्यागकर निर्मल सम्यग्दर्शन की कृपा से स्त्रीवेद का त्याग किया और महान ऋद्धि धारक अनेक देवों से पूजित देव हो गया । स्वर्ग के अनेक सुख भोग भविष्यत्काल में चेलना का जीव नियम से मोक्ष जायेगा। रानी चेलना के सिवाय और जितनी रानियाँ थीं वे भी तप कर और प्राणों का परित्याग कर यथायोग्य स्थान गईं। इस प्रकार चेलना आदि रानियाँ समस्त पापों का नाश कर और पुंवेदपाकर स्वर्ग गईं। और वहां देव हो अनेक मनोहर देवांगनाओं के साथ क्रीड़ाकर भोग भोगने लगी । महाराज श्रेणिक भी सप्तम नरक की प्रबल आयु का नाशकर रत्नप्रभा नामक प्रथम नरक में गये । तथा वहाँ पाप फल का विचार करते हुए और अपनी निंदा करते हुए रहने लगे । अब वे चौरासी हजार वर्ष नरक दुःख भोगकर और वहाँ की आयु को छेदकर भविष्यत्काल में तीर्थंकर होंगे और कर्मनाशकर सिद्धपद प्राप्त करेंगे ।। ११७-१४८ ।।
इति श्रेणिकभवानुबद्ध भविष्यत्पद्मनाभपुराणे श्रेणिकादि भट्टारक श्री शुभचन्द्राचार्य गतिवर्णनं नाम चतुर्दशः सर्गः ॥ १४ ॥
इस प्रकार तीर्थंकर पद्मनाभ के पूर्वभव के जीव महाराज श्रेणिक के चरित्र में भट्टारक श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित श्रेणिक-चेलना आदि की गति - वर्णन करनेवाला चतुर्दशसर्ग समाप्त हुआ ।
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