Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
वचनस्य विचारं ते करिष्यामि न संशयः । किमत्र बहनोक्तेन यत्किचित्ते भविष्यति ॥१३७॥ इत्युदीर्य गतस्तेन साकं बौद्धमठं प्रति । तत्रापश्यन्महाबौद्धान् रक्ताम्बर धरान्वरान् ॥१३८॥ प्रबुद्धय राजपुत्रं तं तैर्जगुर्लक्षणानि च ।
राज्यारेनिविलोक्याशु ज्ञात्वा राज्याहमंजसा ॥१३६।। कहाँ के राजसेवक ! कौन ? किस कारण से कहाँ से यहां आ गये? मैं तुम्हें पीने के लिए पानी तक न दूंगा भोजनादिक की तो बात ही क्या है जाओ-जाओ शीघ्र ही तुम मेरे घर से चले जाओ जरा भी तुम यहाँ पर मत ठहरो यदि तुम राजसेवक हो तो भी मुझे कोई परवा नहीं। ब्राह्मण के इस प्रकार मूर्खता-भरे वचन सुनकर कोप से जिनका गाव काँप रहा है कुमार श्रेणिक ने कहा
___ अरे दयाहीन भिक्षुक हम कौन हैं ? तुझे इस समय कुछ भी मालूम नहीं तुझे पीछे मालूम होगा। तेरे ऐसे दयारहित वचनों पर मैं पीछे विचार करूँगा जो कुछ तुझे उस समय दण्ड दिया जायगा इस समय उसके कहने की विशेष आवश्यकता नहीं। ऐसा कहकर कुमार श्रेणिक और सेठी इन्द्रदत्त जहाँ बौद्ध संन्यासी रहते थे वहाँ गये और वहाँ पर उन्होंने रक्त-वस्त्रों को धारण करनेवाले अनेक बौद्ध संन्यासियों को देखा। कुमार श्रेणिक के लक्षणों को राजा के योग्य देखकर, यह राजकुमार है इस बात को जानकर और यह शीघ्र ही राजा होगा यह भी समझकर उनमें से एक संन्यासी ने राजकुमार श्रेणिक से पूछा ॥१३४.१३६।।
भो पुत्र ! मगधाधीश ! क्व यासि वदतांवर । किमर्थमागतस्त्वं भो एकाकी वद मां प्रति ॥१४०॥ राजकोपादिकं सर्वदेशान्निःसरणं तथा । आख्यत् स श्रेणिकस्तान् वैवृत्तांतं पूर्वसंभवं ॥१४१।। बौद्धाचार्यस्ततोऽवोचद्गृहाण वरभोजनम् । पुनरस्मद्वचो राजन् शृणु त्वद्धितकारणम् ॥१४२।। नीवृत्तो मगधस्य त्वं राज्यभागी भविष्यसि । संदेहो नात्रकर्त्तव्यो मद्वाक्ये निश्चयं कुरु ॥१४३।। बौद्ध धर्ममतो राजन् गृहाण सुखसिद्धये । यतो राज्यस्य संसिद्धिर्भविष्यति तव स्फुटं ॥१४४।। व्रतेन चोपवासेन नोकार्यं सिद्धयति स्फुटं । बौद्धो धर्मो विधातव्यस्त्वया राज्यस्य सिद्धये ॥१४५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org