Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
लेख्यते स्वयमेवात्रेतिलब्धवरभाजनः । देशे देशे पुरे ग्रामे स्वकौशल्यं प्रकाशयन् ॥ ६ ॥ विजहार महीं रम्यां रंजयन् भूपति पतिम् । कुर्वंश्चित्रस्यपट्टानि भरतो भारतेऽखिले ।। ७ ।। अन्यदा सिंधुदेशे च विशाले शालमंडिते । पुरपत्तनखेडाद्रि
द्रोणवाहनभूषिते ॥ ८ ॥ विशाला नगरी तत्र विशाला शोभिता । शास्ता तस्या अभूद्धीमांश्चेटको भटमंडितः ॥ ६ ॥ सुभद्रा महिषी तस्य मृगाक्षी पद्मलोचना । चंद्रानना च तन्वंगी पीनोन्नतपयोधरा ॥ १० ॥ सुधांशुवक्त्रविख्याताः पुत्र्यः सप्ताभवंस्तयोः । प्रियादिकारिणी चाद्या मृगावती वसुप्रभा ॥ ११ ॥ प्रभावती तथा ज्येष्ठा चेलना चंदना तथा । जिनधर्मकरारम्या नारीसर्वगुणान्विताः ।। १२ ।।
ज्योंही उसने पट सामने रख लेखनी हाथ में ली। त्योंही बिना परिश्रम के आप-से-आप पट पर चित्र खिंच गया। चिन को अनायास पट पर अंकित देख भरत को अति प्रसन्नता हुई। अपने वर को सिद्ध समझ वह अयोध्या से निकल पड़ा। एवं अनेक देश, पुर, ग्रामों में अपने चित्रकौशल को दिखाता हुआ, कठिन चित्रों को भी अनायास खींचता हुआ, अपने चिन-कर्म चातुर्य से बड़े-बड़े राजाओं को भी मोहित करता हुआ वह भरत आनंदपूर्वक समस्त पृथ्वीमंडल पर घूमने लगा। अनेक पुर एवं ग्रामों से शोभित, वन-उपवनों से मंडित, भाँति-भाँति के धानों से विराजित एक सिंधु देश है। सिंधु देश में अनुपम राजधानी विशालापुरी है। विशालापुरी के स्वामो नीतिपूर्वक प्रजा का पालन करनेवाले अनेक विद्वानों से मंडित महाराज चेटक थे। महाराज चेटक की पटरानी का नाम सुभद्रा था जो कि मृगनयनी, चन्द्रमुखी, कृशांगी और कठिन एवं उन्नत स्तनों को धारण करनेवाली थी। राजा चेटक की पटरानी सुभद्रा से उत्पन्न मनोहरा, मृगावती, वसुप्रभा, प्रभावती, जेष्ठा, चेलना एवं चंदना ये सात कन्याएँ थीं। ये सातों ही कन्या अति मनोहरा थीं। भली प्रकार जैन-धर्म की भक्त थीं। स्त्रियों के प्रधान-प्रधान गुणों से मंडित एवं उत्तम थीं। सातों कन्याओं के रूप-सौंदर्य देख राजा चेटक एवं महारानी सुभद्रा अति प्रसन्न रहते थे॥५-१२॥
भरतः कालयोगेनाजगाम तत्पुरं परम् । पुत्र्याः सप्त च रूपाणि कृत्वा पट्ट शुभानि च ।। १३ ।।
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