Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
अतः कथय मत्प्राणतुल्ये पूर्णेदुसन्मुखे । प्रसीद मुंच कालुष्यं विधेहि शुभसत्क्रियां ॥ २४ ॥
रानी चेलना की चिंता का समाचार महाराज श्रेणिक के कान तक पहुँचा। अति व्याकुल हो वे शीघ्र ही चेलना के पास आये। चेलना को मौन धारण देख उन्हें अति दुःख हुआ। रानी चेलना के सामने वे विनय भाव से इस प्रकार कहने लगे
प्रिये ! आज तुम्हारी अचानक यह दशा कैसे हो गई ? जब मैं तुम्हारे मंदिर में आता था तो तुमको सदा प्रसन्न ही देखता था। मैंने आज तक कभी आपके चित्त पर ग्लानि न देखी। और उस समय तुम मेरा पूरा-पूरा सम्मान भी करती थीं। आज तुमने मेरा सम्मान भी बिसार दिया। आज तक मैंने तुम्हारा कोई कहना भी न टाला। जिस समय मैं तुम्हारा किसी काम के लिए आग्रह देखता था फौरन करता था तथापि यदि मुझसे तुम्हारी अवज्ञा हो गई हो तो क्षमा करो अब तुम्हारी अवज्ञा न की जायगी। मैं तुम्हारा अब कहना मानंगा। यदि राजमंदिर में किसी ने तुम्हारे प्रति कटुवचन कहे, तुम्हारी आज्ञा नहीं मानी है। सो भी मुझे कहो मैं अभी उसे दंड देने के लिए तैयार हूँ। शुभे! मुझसे थोड़ी-सी तो बातचीत करो। मैं तुम्हारी ऐसी दशा देखने के लिए सर्वथा असमर्थ हूँ। तुम्हारी इस अवस्था ने मुझे अर्धमृतक बना दिया है। तुम्हें मैं अपने आधे प्राण समझता हूँ। तू मेरे जीवनरूपी घर के लिए विशाल स्तम्भ है।
शुभानने ! तेरी दु:खमय अवस्था मुझे भी दुःखमय बना रही है। तेरे दुःखित होने पर यह समस्त राजमंदिर मुझे दुःखमय ही प्रतीत हो रहा है। पूर्ण चन्द्रानने! तू शीघ्र अपने दुःख का कारण कह शीघ्र ही अपनी मनोमलिनता दूर कर ! और जल्दी प्रसन्न हो॥१८-२४॥
ततो यथा कथंचिच्च वचोऽभाणितयाशुभम् । नाऽशर्मपरजं राजन् किंतु धर्मोद्भवं मम ॥ २५ ॥ अधर्म त्वद्गृहे वीक्ष्य राजन् दुःखं ममाभवत् । न त्वज्जं न च बंधूत्थमाकर्ण्यति नृपो जगौ ॥ २६ ॥ राज्ञि मद्धाम्नि सद्धों वर्त्तते शर्मसाधकः । ताथागतोऽस्ति मे देवो विश्वविज्ञानपारगः ॥ २७ ॥ भगवान्गुरुरेवात्र सेव्योः भूपैर्नरोत्तमैः । तत्सेवया सुखं राशि फलं स्वर्मोक्षसंभवं ॥ २८ ॥
महाराज श्रेणिक के ऐसे मनोहर वचन सुनकर भी प्रथम तो रानी चेलना ने कुछ भी जवाब न दिया किन्तु जब उसने महाराज का प्रेम एवं आग्रह अधिक देखा तब वह कहने लगी--
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