Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
मेरे पास कोई पात्र है नहीं इसलिये इस बंन्दर को मारकर इसकी चमड़ी का पात्र बनाना चाहिये । बस फिर क्या था ? विचार के साथ ही उस दुष्ट ने शीघ्र ही उस परोपकारी बन्दर को मार दिया और उसकी चमड़ी में पानी भरकर अयोध्या की ओर चल दिया । कृपानाथ ! अब आप ही कहें क्या उस दुष्ट ब्राह्मण का परोपकारी उस बंदर के साथ वैसा बर्ताव उचित था ? मैंने कहा
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सर्वथा अनुचित | वास्तव में वह ब्राह्मण बड़ा कृतघ्नी था । उसे कदापि उस परोपकारी बंदर के साथ वैसा बर्ताव करना उचित न था । जिनदत्त ! तुम निश्चय समझो जो पापी मनुष्य किये उपकार को भूल जाते हैं संसार में उन्हें अनेक दुःख भोगने पड़ते हैं कोई मनुष्य उन्हें अच्छा नहीं कहता। अब मैं भी तुम्हें एक कथा सुनाता हूँ तुम ध्यानपूर्वक सुनो
इस जंबूद्वीप में एक कौशांबी नाम की विशाल नगरी है। कौशांबी नगरी में कोई मनुष्य दरिद्र न था सब धनी सुखी एवं अनेक प्रकार के भोग भोगनेवाले थे। उसी नगरी में किसी समय एक सोम शर्मा नाम का ब्राह्मण निवास करता था । उसकी स्त्री का नाम कपिला था । कपिला अतिशय सुन्दरी थी मृग नयनी थी काम मंजरी एवं रति के समान मनोहरा थी । कदाचित् सोम शर्मा को किसी कार्यवश किसी वन में जाना पड़ा। वहाँ एक अतिशय मनोहर नौले का बच्चा उसे दीख पड़ा । और तत्काल उसे पकड़ अपने घर ले आया । कपिला के कोई सन्तान न थी । बिना सन्तान के उसका दिन बड़ी कठिनता से कटता था इसलिये जब से उसके घर में वह बच्चा आ गया पुत्र के समान वह उसका पालन करने लगी। और उस बच्चे से उसका दिन भी सुख से व्यतीत होने लगा। दुर्भाग्य के अन्त हो जाने पर कपिला के एक पुत्र उत्पन्न हुआ । पुत्र की उत्पत्ति से कपिला के आनन्द का ठिकाना न रहा । सोम शर्मा और कपिला अब अपने को परम सुखी मानने लगे । और आनन्द से रहने लगे ।
कपिला का पति सोम शर्मा किसान था । इसलिए किसी समय कपिला को धान काटने के लिए खेत पर जाना पड़ा। वह बच्चे को पालने में सुलाकर और नौले को उसे सुपुर्द कर शीघ्र ही खेत को चली गई। उधर कपिला का तो खेत पर जाना हुआ और इधर एक काला सर्प बालक के पालने के पास आया । ज्यों ही नौला की दृष्टि काले सर्प पर पड़ी वह एकदम सर्प पर रूर पड़ा और कुछ समय तक चू चू फू-फू शब्द करते हुए घोर युद्ध होने लगा । अन्त में अपने पराक्रम से नौला ने विजय पा ली और उस सर्पराज को तत्काल यमलोक का रास्ता बता दिया तथा वह बलिक के पास बैठ गया ।
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कपिला अपना कार्य समाप्त कर घर आई । कपिला के पैर की आहट सुन नौला शीघ्र ही कपिला के पास आया और कपिला के पैरों में गिर उसकी मिन्नत करने लगा । नौले का सर्वांग उस समय लोहू-लुहान (रक्तमय ) था इसलिए ज्यों ही कपिला ने उसे देखा इसने अवश्य मेरे पुत्र को मारकर खाया है यह समझ मारे त्रोध के उसका शरीर भभक उठा और बिना विचारों उस दिन नौले को मारे मूसलों के देखते-देखते यमपुर पहुँचा दिया। किंतु ज्यों ही उस बालक के पास आई। और ज्यों ही उसने बालक को सकुशल देखा उसके शोक का ठिकाना न
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