Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
ओठ डसने लगा और उसकी आँखें भी इधर-उधर फिरने लगीं। रानी ने जब उसकी यह दशा देखी तो उसे प्रबल अनिष्ट का करने वाला समझ वह डर गई। अपने हित की इच्छा से निमोह हो उसने वह पुत्र शीघ्र हो वन में भेज दिया । जब राजा को यह पता लगा कि रानी ने भयभीत हो पुत्र वन में भेज दिया है तो उससे न रहा गया पुल पर मोहवश उन्होंने शीघ्र ही उसे राजमंदिर में मंगा लिया उसे पालन-पोषण के लिए किसी धाय के हाथ सौंप दिया। और उसका नाम कुणिक रख दिया । एवं वह कुणिक दिनोंदिन बढ़ने लगा। कुमार कुणिक के बाद रानी चेलना के वारिषेण नाम का दूसरा पुत्र हुआ । कुमार वारिषेण अनेक ज्ञान-विज्ञानों का पारगाभी, मनोहर रूप का धारक, सम्यग्दर्शन से भूषित और मोक्षगामी था । वारिषेण के अनंतर रानी चेलना के हल्ल, हल्ल के पीछे विदल, विदल के पीछे जितशत्रु ये तीन पुत्र और भी उत्पन्न हुए। और ये तीनों ही कुमार माता-पिता को आनंदित करने वाले हुए ।
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इस प्रकार इन पाँच पुत्रों के बाद रानी चेलना के प्रबल भाग्योदय से सबको आनंद देने वाला फिर गर्भ रह गया गर्भ के प्रसाद से रानी चेलना का आहार कम हो गया । गति भी धीमी हो गई। शरीर पर पांडिमा छा गई। आवाज मंद हो गई। शरीर अतिकृश हो गया पेट की त्रिवली भी छिप गई । होने वाला पुत्र समस्त शत्रुओं के मुख काले करेगा इस बात को मानो बतलाये हुए ही उसके दोनों चूचक भी काले पड़ गये एवं गर्भभार के सामने उसे भूषण भी नहीं रुचने लगे ॥११- ३१॥
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तस्या इति सुदुर्लभः ।
ततो दोहलको जज्ञे आरुह्य हस्तिनं भूत्या भ्रमिष्यामि च प्रावृषि ।। ३२ ।।
तदा प्राप्ता कृशांगी सा समासीद्गजगामिनी ।
एकदा तां नृपो वीक्ष्य पप्रच्छ
साप्राक्षीद्द ुर्धराकांक्षीऽजनि मे ग्रीष्मे गजं समारुह्य मेघवृष्टैः
दुर्धरं तं परिज्ञाय ग्रीष्मे सचितो
कृशकारणम् ॥ ३३ ॥
हृदिवल्लभ । भ्रमाम्यहम् ॥ ३४ ॥
वृष्टयाद्यभावतः ।
योषमादायास्थात्स स्थगित विग्रहः ॥ ३५ ॥
दुर्लालसं नृपं
प्रेक्ष्याप्राक्षीदभयपंडितः ।
कथं तेऽद्य परा चिंता हृदि सर्वांग शोषिणी ॥ ३६ ॥
इति संवादितो भूपो जगौ तत्कारणं क्षणात् । श्रुत्वेति वचनं पुत्रः करिष्यामीति
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संजगौ ॥ ३७ ॥
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