Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 306
________________ श्रेणिक पुराणम् २९३ सुभद्रा बिना जब मेरा एक क्षण भी वर्ष सरीखा बीतने लगा तो बिना किसी के पूछे मैं जबरन सुभद्रा को हर लाया और गमन प्रिय नगर में आकर आनन्द से उसके साथ भोग भोगने लगाा। इधर मैं तो राजकुमारी सुभद्रा के साथ आनन्द से रहने लगा और उधर किसी सखी ने बालकपुर के स्वामी सुभद्रा के पिता से सारी बोखता कह सुनाई और मेरा ठिकाना भी बतला दिया सुभद्रा की इस प्रकार हरण वार्ता सुन मारे क्रोध के उसका शरीर भभक उठा और विमान पंक्तियों से समस्त गगन मंडल को आच्छादन करता हुआ शीघ्र ही गमन प्रिय नगर की ओर चल पड़ा। बालकपुर के स्वामी का इस प्रकार आगमन मैंने भी सुना अपनी सेना सजाकर मैं शीघ्र ही उसके सन्मुख आया। चिरकाल तक मैंने उसके साथ और अनेक विद्याओं को जानकर तीक्ष्ण खड्गों धारी उसके योद्धाओं के साथ युद्ध किया अन्त में बालकपुर के स्वामी ने अपने विद्या बल से मेरी समस्त विद्या छीन ली सुभद्रा को भी जबरन ले गया। विद्या के अभाव से मैं विद्याधर भी भूमि गोचरी के समान रह गया। अनेक शोकों से आकुलित हो मैं पुन: उस विद्या के लिए यह मंत्र सिद्ध कर रहा हूँ बारह वर्ष पर्यन्त इस मंत्र के जपने से वह विद्या सिद्ध होगी ऐसा नैमित्तिक ने कहा है। किन्तु बारह वर्ष बीत चुके अभी तक विद्या सिद्ध न हुई इसलिए मैं अब घर जाना चाहता हूँ। ज्यों ही कुमार ने उस पुरुष के मुख से ये समाचार सुने शीघ्र ही पूछा भाई वह कौन-सा मन्त्र है मुझे भी तो दिखाओ देखू तो वह कैसा कठिन है ? कुमार के इस प्रकार पूछे जाने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही वह मंत्र कुमार को बतला दिया। कुमार अतिशय पुण्यात्मा थे उस समय उनका भाग्य सुभाग्य था इसलिए उन्होंने मंत्र सीखकर शीघ्र ही इधरउधर कुछ बीज क्षेपण कर दिये और बात की बात में वह मंत्र सिद्ध कर लिया मंत्र से जो-जो विद्या सिद्ध होने वाली थी शीघ्र ही सिद्ध हो गई जिससे उसे परम संतोष हो गया एवं दोनों महानुभाव आपस में मिल-भेंट कर बड़े प्रेम से अपने-अपने स्थान चले गये। मंत्र सिद्ध कर कुमार अपने घर (राजमहल) आये विद्या बल से उन्होंने शीघ्र ही कृत्रिम मेघ बना दिये। रानी चेलना को हाथी पर चढ़ा लिया इच्छानुसार और जहाँ-तहाँघमाया। जब उसके दोहले की पति हो गई तो वह अपने राजमहल में आ गई। दोहले की पति कठिन समझ जो उसके चित्त में खेद था वह दूर हो गया। अब उसका शरीर सुवर्ण के समान चमकने लगा। नवमास के बीत जाने पर रानी चेलना के अतिशय प्रतापी शत्रुओं का विजयी पुत्र उत्पन्न हुआ। और दोहले के अनुसार उसका नाम राजकुमार रखा गया। राजकुमार के बाद रानी चेलना के मेघकमार नाम का पुत्र उत्पन्न हआ। सात ऋषियों से आकाश में जैसी तारा शोभित होती है रानी चेलना भी ठीक उसी प्रकार सात पुत्रों से शोभित होने लगी। इस प्रकार आपस में अतिशय सुखी समस्त खेदों से रहित वे दोनों दंपती आनन्दपूर्वक भोग भोगते राजगृह नगर में रहने लगे ।।४७-६७॥ एकदा नृपसामंत किरीट तटरत्नजैः । मयूखैमंडितांह्रयब्जः सुशब्दमगधैः स तः ॥ ६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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