Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
के सब वापस लौट गये। जब विघ्न शांत हो गया तब चोर को जाने की आज्ञा दे दी तथा यह समझ कि चोर चला गया वे अपने किवाड़ बंद कर सो गये। किंतु वह दुष्ट उसी घर में छिप गया और दाव पाकर मालमत्ता लेकर चला गया । प्रातःकाल सेठ सुभद्रदत्त की आँख खुली। अपनी चोरी देख उन्हें परम दुःख हुआ । वे कहने लगे मैंने तो उस दुष्ट चोर की रक्षा की थी किंतु उस दुष्ट ने मेरे साथ भी यह दुष्टता की । यह बात ठीक है दुष्ट अपनी दुष्टता कदापि नहीं छोड़ते तथा ऐसा कुछ समय सोच-विचार कर वे शान्त हो गये। इसलिये हे मुनिनाथ ! आप ही कहें क्या उस चोर का सेठ सुभद्रदत्त के साथ वैसा बर्ताव ठीक था ? मैंने उत्तर दिया ।
सर्वथा अनुचित । उसने सेठ सुभद्रदत्त के साथ बड़ा विश्वासघात किया । वह चोर बड़ा पापी और कुमार्गी था । इसमें जरा भी सन्देह नहीं । अब मैं भी तुम्हें कथा सुनाता हूँ मुझे विश्वास है अब की कथा से तुम्हें जरूर सन्तोष होगा तुम ध्यानपूर्वक सुनो ।।२३२-२४२ ॥
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मन्मुखोद्गीर्णमेकं च व्याख्यानं शृणुतोषदं । अनंगरंगसंसर्गो वंगदेशोऽत्र वर्त्तते ।। २४३||
जाती सुकंदपंकेज केतकीचंपकादिभिः । भृता चंपापुरी तत्र चंपकाभनरैर्भृता ॥२४४॥ विप्रो वेदादिसंवेत्ता सोमशर्माभिधो धनी । आस्तां द्वे वल्लभे तस्य सोमिल्लासोमशर्मिका ॥ २४५॥
सौमिल्यायाः सुभामिन्याः पराकारः सुतोऽजनि । तदा भर्त्रादि सन्मानं संगता सा सुसंगता || २४६ ||
विद्वेषयति सोमश्रीद्वितीया तां मर्मभिद्वचनस्यै कल है:
अथास्ति सौरभेयश्वभद्रनामा शांतस्तत्र ततस्तस्मै दत्ते ग्रासं
वाडवस्य गृहद्वार युपविष्टस्य श्रृंगे स बालकः प्रोतो दुष्टया
तदा चीत्कारमा कुर्वन् शिशुर्म प्रोतबालं च मरणेसति दृषभं
सपत्निकाम् । कोपभाषणैः ।।२४७॥
सुशीलभृत् । जनोऽखिलः || २४८ ||
तस्य
च ।
सोमशर्मया ॥ २४६ ॥
क्षणांतरे । दोषवर्जितं ॥ २५० ॥
२६३
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