Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
२०६ देखो इस राजा की दुष्टता जिस समय मैं मुनि नहीं था उस समय भी मुझे यह अनेक संताप देता था। और अब मैं मुनि हो गया, इसके साथ मेरा कुछ भी संबंध नहीं रहा तो भी यह मुझे संताप दिये बिना नहीं मानता। ऐसा नीच, चांडाल कोई राजा नहीं दीख पड़ता। तथा इस प्रकार क्रोधांध हो मुनि सुषेण ने बड़े जोर से किसी पत्थर में लात मारी। लात मारते ही वे एकदम जमीन पर गिर गये। तत्काल उनके प्राणपखेरू उड़ गये। एवं खोटे निदान से मुनि सुषेण व्यन्तर हो गये।
मुनि सुषेण की मृत्यु का समाचार राजा सुमित्र ने भी सुना। सुनते ही उनका चित्त अति आहत हो गया। सुमित्र और मंत्री आदि सुषेण की मृत्यु पर अति शोक करने लगे। किसी दिन सुषेण की मृत्यु से सुमित्र के दुःख की सीमा यहाँ तक बढ़ गई कि उसने समस्त राज्य का परित्याग कर दिया। शीघ्र ही तापस के व्रत धारण कर लिये। और आयु के अंत में मरकर खोटे तप के प्रभाव से वह भी देव हो गया।
मगधेश!अब देवगति की आयु को समाप्त कर राजा सुमित्र का जीव तोश्रेणिक हुआ है। और मुनि सुषेण का जीव अपने आयु-कर्म के अन्त में रानी चेलना के गर्भ में आवेगा। वह कुणक नाम का धारक तेरा पुत्र होगा। एवं तेरा पुत्र होकर भी वह तेरे लिये सदा शत्रु रहेगा।
मुनिराज यशोधर के मुख से अपने पूर्वभव का हाल वास्तविक रीति से जान लिया। एवं मुनिराज के गुणों की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए वे ऐसा विचार करने लगे
अहा!!! मुनि यशोधर का ज्ञान धन्य है। उत्तम क्षमा भी इनकी प्रशंसा के लायक है। परीषहों के जीतने में धीरता भी इनकी लोकोत्तर है। इनके प्रत्येक गुण पर विचार करने से यही बात जान पड़ती है कि मुनि यशोधर-समान परम ध्यानी, परम ज्ञानी, मुनि प्रायः ही संसार में होगा?॥७६-८७॥
शासनं जिनचंद्रस्य सत्यं नान्यज्जगत्त्रये । तत्वं तद्गदितं सत्यं सत्यं सत्यव्रतं यतेः ॥ ८८ ॥ अहो! ये वंचका लोके रसनारसलंपटाः । परिग्रहग्रहग्रस्ता बोधयोग पराङ मुखाः ॥ ८६ ॥ नाम्ना गुरुपदं मूढा वहंतो हंतुकामुकाः । गुरवो नैवते नूनं पाखंडपदमंडिताः ॥ ६० ॥ किंचित्तत्वस्य श्रद्धानं दधत्स श्रेणिको नृपः । पाक्षिकाचारसंन्यस्तमतिर्दर्शनसन्मुखः
॥११॥
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