Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम
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बराबर तीन घड़े फूट गये, तेरा बहुत नुकसान हो गया तथापि तुझे जरा भी क्रोध न आया। जिनदत्त के ऐसे प्रशंसायुक्त किंतु उत्तम वचन सुन तुंकारी ने कहा
भाई जिनदत्त ! क्रोध का भयंकर फल मैं चख चुकी हूँ। इसलिए मैंने कुछ शांत कर दिया है मैं जरा-जरा-सी बात पर क्रोध नहीं करती। तुंकारी के ऐसे वचन सुन जिनदत्त ने कहा।।६६-७६॥
स उवाच शुभे मातस्तत्कथां कथयस्व मां । अबीभणत्तदा सापि शृणु वृत्तांतमंजसा ।। ७७ ॥ आनंदपूरिते रम्ये आनंदाख्यसुपत्तने । सानंदजनसंपूर्णे विस्तीर्णेऽक्षीणसंपदि ॥ ७८ ॥ शिवशर्मा महादेवो धनेभ्यो वसति स्फुटं। कमलश्री सुनामाऽभूत्तस्य जाया सुलोचना ॥ ७९ ॥ तयोर्बभूवुरष्टौ च पुत्रा: पौरंदरोपमाः । भव्ययौवनलीलाढ्या धनाद्यष्टमदावहाः ॥ ८० ॥ ततस्तयोरहंभद्रा तनुजाऽसीच्छिवावहा । पित्रादीनां सदा मान्या ललिता बंधुसत्करैः ।। ८१ ॥ सरूपा सकला सारा मानिता भ्रातृजायया । मानयंति जनाः सर्वे गृहीत्वा नाम चोत्तमं ॥२॥ ततो विज्ञापयामास भूपालमिति सादरं । भवद्भिर्जनमुख्यश्च बांधवै गरैस्तथा ॥८३॥ तुंकारनिनदो राजन्न विधेयः कदाचन । मत्पुत्र्या इति चोदशं सा प्रापद्भ पतस्तदा ॥८४॥ तुंकार वचनं कोऽपि दत्ते देवाच्च मां प्रति । करोम्यनर्थसंतानं तस्य भूपसमक्षकं ॥ ८५ ।। तदा प्रभृति मन्नाम तुकारीतिकृतं जनः । इत्थं तातादिसन्मान्या स्थिता धाम्नि सकोपिका ॥८६॥
या अ' बहिन ! तुम क्रोध का फल कब चख चुकी हो, कृपा कर मुझे उसका सविस्तार समाचार सुसाओ। इस कथा के सुनने की मुझे विशेष लालसा है। जिनदत्त के ऐसे वचन सुन तुंकारी ने
कहा
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