Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
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सकता। तथापि मेरे चित्त में जो अवज्ञा का संकल्प बैठा है, मुझे संताप दे रहा है। इसीलिए यह मैंने आपकी स्तुति की है। प्रभो! आप मेघतुल्य, जीवों के परोपकारी हैं । आप ही धीर और वीर हैं। एवं शुभ भावना भावनेवाले हैं। इस प्रकार रानी द्वारा भली प्रकार मुनि की स्तुति समाप्त होने पर राजा-रानी ने भक्तिपूर्वक फिर मुनिराज के चरणों को नमस्कार किया और यथास्थान बैठ गये। एवं मुनिराज ने भी अतिशय नम्र दोनों दंपती को समान भाव से धर्म-वृद्धि दी।
तथा इस प्रकार उपदेश देने लगे-विनीत मगधेश ! संसार में यदि जीवों का परम मित्र है तो धर्म ही है। इस धर्म की कृपा से जीवों को अनेक प्रकार के ऐश्वर्य मिलते हैं। उत्तम कुल में जन्म मिलता है। और संसार का नाश भी धर्म की ही कृपा से होता है। इसलिए उत्तम पुरुषों को चाहिए कि वे सदा उत्तम धर्म की आराधना करें॥२०८-२१७।।
क्व नागरोपो मुनिकंधरोद्भवः
क्व चेलनायाः कथनं च भिक्षुजं । क्व रात्रिमध्ये मुनिपार्श्वगंतृता
___ क्व धर्मवृद्धिर्मुनिवक्त्रनिर्गता ।।२१८।।
दत्ताया मुनिनायकेन शिवदा तीर्थादिमूलं प्रभो चक्रेशप्रमुखादिशर्मजनिनी धर्मादिवृद्धिःपरा। राज्ञो भारतभावितीर्थपतिता सत्सूवने दूतिका दंपत्योर्युगपढ्षोन्मुखतयोः संसारभीतात्मनोः ॥२१६॥
देखो भाग्य का महात्म्य कहाँ तो परम पवित्र मुनि यशोधर का दर्शन ? और बौद्ध धर्म का परम भक्त कहाँ मगधेश राजा श्रेणिक ? तथा कहाँ तो रानी चेलना द्वारा बौद्ध धर्म की परीक्षा? और कहाँ महाराज श्रेणिक का परीक्षा से क्रोध ? कहाँ तो श्रेणिक का मनिराज के गले में सर्प गिराना? और कहाँ फिर रानी द्वारा उपदेश? एवं कहाँ तो रात्रि में राजा-रानी का गमन ? और कहाँ समान रीति से धर्म-वृद्धि का मिलना? ये सब बातें उन दोनों दंपती को शुभअशुभ भाग्योदय से प्राप्त हुई।
मुनि यशोधर ने जो धर्म-वृद्धि दी थी वह साधारण न थी किंतु स्वर्ग-मोक्ष आदि सुख प्रदान करनेवाली थी। संसार से पार करनेवाली थी। तीर्थंकर चक्रवर्ती इन्द्र-अहमिन्द्र आदि पदों
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