Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
व्याकुल करता हुआ वह मत्त हाथी उसी नदी की ओर झपटा जहाँ कुमार बैठे थे। जिस समय पर्वत के समान विशाल, अति मत्त, अपनी ओर आता हुआ, वह भयंकर हाथी कुमार की नजर पड़ा तो कुमार शीघ्र ही उसके साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो गये। तथा उस मतवाले हाथी के सम्मुख जाकर अनेक प्रकार से उसके साथ युद्ध कर, मुक्कों से मार-मारकर उसे मद रहित कर दिया। और निर्भयतापूर्वक क्रीड़ार्थ उसकी पीठ पर चट सवार हो राजद्वार की ओर चल दिये॥२२-३०॥
वशीभूतं गजं मत्वा रुरोह नृपनंदनः । जयारवस्तदा चक्रे लोक: कंपितविग्रहैः ॥ ३१॥ अहोवीर्यमहोवीर्यं रूपं च नवयौवनं । इंद्रदत्तस्य जामातुः शक्तिर्लोकोत्तरा मता ।। ३२॥ जनिर्जेतुमशक्योऽयं द्विरदो मदमेदुरः । वशीकृतो महाबुद्धयाऽनेन पुण्यप्रभावतः ।। ३३ ।। इति पुण्यजनारावैः स्तूयमानो गजोद्धृतः । संभ्रमेण नृपागारं प्राविशत्केतुराजितं ।। ३४ ।। दंत्यारूढं महाकारमसाधारणसद्गुणम् ।
नृपस्तं श्रेणिकं वीक्ष्य तुतोष निजमानसे ॥ ३५ ॥ मतवाले हाथी पर बैठे हुए कुमार को देखकर हाथी के कर्मों से भयभीत, कुमार का हाथी के साथ युद्ध देखनेवाले, कुमार की वीरता से चकित, अनेक मनुष्य जय-जय करने लगे। एवं परस्पर एक-दूसरे से यह भी कहने लगे सेठी इन्द्रदत्त के जमाई का पराक्रम आश्चर्यकारक है। रूप और नवयौवन भी बड़ा भारी प्रशंसनीय है। शक्ति भी लोकोत्तर मालूम पड़ती है। देखो जिस मत्त हाथी को बलवान से बलवान भी कोई मनुष्य नहीं जीत सकता था उस हाथी को इस कुमार ने अपने बुद्धि, बल और पुण्य के प्रभाव से बात-की-बात में जीत लिया। तथा इधर मनुष्य तो इस भाँति पवित्र शब्दों से कुमार की स्तुति करने लगे उधर गज से भी अतिशय पराक्रमी कुमार ने अनेक प्रकार की नीली-पीली ध्वजाओं से शोभित क्रीडापूर्वक नगर में प्रवेश किया ॥३१-३॥
अवादीन्नपतिः प्रीत्या मुदा तं नृपनंदनं । भो वीराणां महावीर नानापुण्यफलोपभुक् ।। ३६ ॥ याचय स्वमनोऽभीष्टं वरं सत्फलमंडितं ।। ददामि तेऽद्यसद्रूप गुणमालामनोहर ।। ३७ ।।
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