Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
११३
गवादिपशु वर्ज च द्विपदत्यक्तकं तथा । नालिकेरादि वर्ज च प्रीतिदं प्रचुरं तथा ॥११२॥ श्रुत्वेति वाड़वाः सर्वे बुद्धिलाभाय तं श्रिताः । स समुद्धीर्य तान् बुद्धया गरिष्टप्रतिमः सदा ॥११३॥ आनयामास क्षीरार्थं शालीनां कणिशानि च । यंत्रे निः पीड्य निः काश्य क्षीरं गोक्षीरसत्प्रभं ॥११४॥ प्रपूर्य नृपति वेगाद्घटान् दुग्धावभासिनः । प्रेषयामास बुद्धींद्रो मागधांगसमुद्भवः ॥११॥
ब्राह्मणों को इस प्रकार हताश देख कुमार ने फिर उन्हें समझा दिया। तथा एक दर्पण मँगाया और दर्पण पर तिलों को पूरकर ब्राह्मणों को आज्ञा दी कि जाओ इनका तेल निकलवा लाओ। जिस समय कुमार की आज्ञानुसार ब्राह्मण तेल पेरकर ले आये। तो उस तेल को कुमार ने तिलों की बराबर ही दर्पण पर पूर दिया। और महाराज श्रेणिक की सेवा में किसी मनुष्य द्वारा भिजवा दिया।
तिलों के बराबर तेल देख महाराज चकित रह गये। फिर उनके हृदय समुद्र में विचारतरंग उछलने लगीं। वे बारम्बार नन्दिग्राम के ब्राह्मणों के बुद्धिबल की प्रशंसा करने लगे। अब महाराज को क्रोध के साथ-साथ नन्दिग्राम के ब्राह्मणों की बुद्धि-परीक्षा कौतूहल-सा हो गया। उन्होंने फिर किसी सेवक को बुलाया और उसे आज्ञा दी कि तुम अभी नन्दिग्राम जाओ। और ब्राह्मणों से कहो कि महाराज ने भोजन के योग्य दूध मँगाया है। उनसे यह कह देना कि वह दूध गाय-भैंस आदि चौपायों का न हो। और न दुपायों का हो । नारियल आदि पदार्थों का भी न हो। किंतु इनसे अतिरिक्त हो । मीठा हो । उत्तम हो और बहुत-सा हो।
महाराज की आज्ञानुसार दूत फिर नन्दिग्राम को गया महाराज ने जैसा दूध लाने के लिए आज्ञा दी थी। वही आज्ञा उसने नन्दिग्राम के विप्रों के सामने जाकर कह सुनायी। और यह भी सुना दिया कि महाराज का क्रोध तुम्हारे ऊपर बढ़ता ही चला जाता है। महाराज आप लोगों पर बहुत नाराज हैं। दूध शीघ्र भेजो नहीं तो तुम्हें नन्दिग्राम में नहीं रहने देंगे।
दूत के मुख से यह संदेशा सुन विप्रों के मस्तक चक्कर खाने लगे। विचारने लगे कि दूध तो गाय, भैंस, बकरी आदि का ही होता है। इसके अतिरिक्त किसी का दूध आज तक हमने सुना ही नहीं है। महाराज ने जो किसी अन्य ही चीज का दूध मँगाया है सो उन्हें क्या सूझी है ? क्या वे अब हमारा सर्वथा नाश ही करना चाहते हैं ! तथा क्षणेक ऐसा विचार कर वे अति व्याकुल हो दौड़ते-दौड़ते अभयकुमार के पास गये। और महाराज का सब संदेशा कुमार के सामने कह सुनाया। तथा कुमार से यह भी निवेदन किया कि हे महानुभाव कुमार ! अबकी महाराज की आज्ञा बड़ी कठिन है क्योंकि हो सकता है दूध तो गाय, भैंस, बकरी आदि का ही हो सकता है।
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