Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
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बुद्धया सिद्धितसर्वसिद्धिरभयो भानुप्रभापिंजरो, जीयाद्भूतलमंडले नृपकला कांतक्रमं भूषयन् ॥ ८६ ॥ बुद्धितो विशदमार्गमंडनं
बुद्धितोऽखिलनृपाधिपूजनम् बुद्धितो बलकुलालिलिंगनं
बुद्धितोनयपतित्त्वभाजनम् ॥ १० ॥
इस प्रकार पक्षपात रहित न्याय करने से अभयकुमार की कीर्ति चारों ओर फैल गई। उनकी न्यायपरायणता देख समस्त प्रजा मुक्तकंठ से तारीफ करने लगी। एवं अभयकुमार आनंद से राजगृह में रहने लगे।
किसी समय महाराज श्रेणिक की अंगूठी किसी कुएँ में गिर गई। कुएँ में अंगूठी गिरी देख महाराज ने शीघ्र ही अभयकुमार को बुलाया। और यह आज्ञा दी
प्रिय कुमार! अँगूठी सूखे कुएं में गिर गई है। बिना किसी बांस आदि की सहायता के शीघ्र अँगूठी निकालकर लाओ। महाराज की आज्ञा पाते ही कुमार शीघ्र ही कुएं के पास गये। कहीं से गोबर मंगाकर कुमार ने कुएं में गोबर डलवा दिया। जिस समय गोबर सूख गया कुएँ के मुंह तक पानी से भरवा दिया। ज्योंही बहता-बहता गोबर कुएँ के मुंह तक आया गोबर में लिपटी अंगूठी भी कएँ के मंह पर आ गई तथा उस अंगूठी को लेकर कुमार ने महाराज की सेवा में ला हाजिर की। कुमार का यह विचित्र चातुर्य देख महाराज.अति प्रसन्न हुए। कुमार का अद्भुत चातुर्य देख सब लोग कुमार के चातुर्य की प्रशंसा करने लगे। अनेक गुणों से शोभित अभयकुमार को चतुर जान महाराज श्रेणिक भी कुमार का पूरा-पूरा सम्मान करने लगे। और उनको बात-बात में अभय कुमार की तारीफ करनी पड़ी। इस प्रकार अनेक प्रकार के नवोन-नवीन काम करने का कौतूहली, महाराज श्रेणिक आदि उत्तमोत्तम पुरुषों द्वारा मान्य, नीति-मार्ग पर चलनेवाला, समस्त दोषोंकर रहित, वृहस्पति के समान प्रजा को शिक्षा देनेवाला, अतिशय आनंदयुक्त, अपने बुद्धिबल से अति कठिन कार्य को भी तुरंत करनेवाला, सूर्य के समान तेजस्वी, राजलक्षणों से विराजमान, युवराज अभयकुमार सबको आनंद देने लगे।
संसार में जीवों को यदि सुख प्रदान करनेवाली है तो यह उत्तम बुद्धि ही है। क्योंकि इसो की कृपा से मनुष्य सभी का शिरोमणि बन जाता है। उत्तम बुद्धिवाले मनुष्य का राजा भी पूरा
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