Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
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तथा कुमार की रूप-संपत्ति उन्होंने देख यह भी निश्चय कर लिया कि यह कोई अवश्य राजकुमार है। यह बालक ब्राह्मण नहीं हो सकता क्योंकि जितने भी बालक यहाँ पर हैं सबसे तेजस्वी, प्रतापी एवं राजलक्षणों से मंडित यही जान पड़ता है। उपस्थित बालकों में इतना तेज किसी के चेहरे पर नहीं जितना इस बालक के चेहरे पर दिखाई देता है। एवं किसी से यह भी जानकारी प्राप्त की कि यह कुमार महाराज श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार है। राजसेवकों ने नन्दिग्राम जाने का विचार यहीं समाप्त कर दिया। वे लज्जित एवं आनंदित हो राजगृह की ओर ही लौट पड़े और महाराज को नमस्कार कर अभयकुमार की जो-जो चेष्टा उन्होंने देखी थीं सब कह सुनायीं।
सेवकों द्वारा अभयकुमार का समस्त वृत्तांत सुन, उन्हें बुद्धिमान एवं रूपवान भी निश्चय कर, महाराज श्रेणिक को अति प्रसन्नता हुई अत्यधिक आनंद के कारण उनके नेत्रों से आनंदाश्र झरने लगे। मुख कमल के समान विकसित हो गया। तथा वे विचार करने लगे कि मेरा अनुमान कदापि असत्य नहीं हो सकता। मुझे दृढ़ विश्वास था, नन्दिग्राम के ब्राह्मणों की बुद्धि ऐसी विशाल नहीं हो सकती। जरूर उनके पास कोई-न-कोई चतुर मनुष्य होना चाहिए भला कुमार अभय के सिवाय इतनी बुद्धि की तीक्ष्णता किसमें हो सकती है ? तथा क्षणेक ऐसा विचार कर उन्होंने अभयकुमार को बुलाने के लिए कुछ राजसेवकों को बुलाया। और उनको आज्ञा दी कि तुम अभी नन्दिग्राम जाओ। और अभयकुमार से कहो कि महाराज ने आपको बुलाया है। तथा यह भी कहना कि आपके लिए महाराज ने यह भी आज्ञा दी है कि कुमार न तो मार्ग से आवे और न उन्मार्ग से आवे। न दिन में आवे, न रात में आवे। भूखे भी न आवे, अफरे पेट भी न आवे । न किसी सवारी में आवे और न पैदल आवे। किंतु राजगृह नगर शीघ्र ही आवे।
महाराज की आज्ञा पाते ही सेवक शीघ्र ही नन्दिग्राम की ओर चल दिये। एवं कुमार के पास पहुँचकर, उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार कर महाराज का जो-कुछ संदेशा था, सब कुमार को कह सुनाया ॥१६३-१६७।।
ततोऽभयकुमारेण निषिद्धा भयतो द्रुतम् । मा कुरुध्वं भयं विप्राः करिष्यामि यथातथम् ॥१६॥ शकटस्य ततो क्षेषु सिक्यानि च विबंध्य सः । तत्र प्रविश्य संध्यायां भुंजयन् हरिमंथकान् ॥१६॥ सिक्याधः स्थितपादश्चामयाम नृपपत्तनम् । सकौतुकर्महाविप्रैर्महोत्सवशत।। समम् ॥१७०॥
अबकी महाराज ने अभयकुमार के ऊपर भी कठिन संदेशा अटकाया है। और उन्हें राजगृह नगर बुलाया है। यह समाचार सारे नन्दिग्राम में फैल गया। समाचार सुनते ही समस्त ब्राह्मण हा-हाकार करने लगे। भाँति-भाँति के संकल्प-विकल्पों ने उनके चित्त को अपना स्थान बना लिया। क्षण-क्षणे अब उनके मन में यह चिन्ता घूमने लगी कि अब हम किसी रीति से बच
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