Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
गालियाँ भी दे मारी। मुझे उस समय अधिक दुःख हुआ था इसलिए अब मैं उनसे बिना बदला लिये न छोड़गा। उन्हें नन्दिग्राम से निकालकर मानूंगा। इस प्रकार महाराज के वचन सुनकर, और महाराज का क्रोध अनिवार्य है यह भी समझकर, मंत्रियों ने विनय से कहा।
राजन इस समय आप भाग्य के उदय से उत्तम पद में विराजमान हैं। आप सभी के स्वामी कडे जाते हैं। आपको कदापि अन्याय मार्ग में प्रवृत्त नहीं होना चाहिए। संसार में राजा न्यायपर्वक राज्य का पालन करते हैं। उन्हें कीर्तिधन आदि की प्राप्ति होती है। उनके देश एवं नगर भी दिनोंदिन उन्नत होते चले जाते हैं। हे प्रजापालक ! अन्याय से राज्य में पापियों की संख्या अधिक बढ़ जाती है, देश का नाश हो जाता है। समस्त लोक का प्रलय होना भी शुरू हो जाता है। हे महाराज! जिस प्रकार किसान लोग खेत में स्थित धान्य की बाढ़ आदि प्रयत्नों से रक्षा करते हैं। उसी प्रकार राजा को भी चाहिए कि वह न्यायपूर्वक बड़े प्रयत्न से राज्य की रक्षा करे। हे दीनबंधु ! संसार में राजा के न्यायवान होने से समस्त लोक-न्यायवाला होता है। यदि राजा ही अन्यायी होवे तो कभी भी उसके अनुयायी लोग न्यायवान नहीं हो सकते। वे अवश्य अन्याय मार्ग में प्रवृत्त हो जाते हैं। कृपानाथ ! यदि आप नन्दिग्राम के ब्राह्मणों को नन्दिग्राम से निकालना ही चाहते हैं तो उन्हें न्याय-मार्ग से ही निकालें। न्याय-मार्ग के बिना आश्रय किये आपको ब्राह्मणों का निकालना उचित नहीं ॥३५-४३।।
अतो न्याय व्यवस्थाप्य निः काश्या वाडवास्त्वया । श्रुत्वेति तं नृपोऽवोचत् साधु २ त्वयोदितं ॥ ४४ ॥ ततो दोषाय भूतेन मेषोनंदिपुरं प्रति । प्रस्थापितो जनः साकमिति वाक्यंवदैवरै ॥ ४५ ॥ तद्रक्षकास्तदा मेषं जग्मुरादाय तत्पुरम् । दृष्ट्वा तत्र द्विजा वाचो जगुरित्थं नयोद्यताः ।। ४६ ।। मेषोऽयं प्रेषितो राज्ञ विप्रा अस्मै निरन्तरं । देयो ग्रासः प्रयत्नेन कृशः पुष्टश्च वा यदि ॥ ४७ ॥ भविष्यति तदानूनं भवतां ग्रामनाशनम् । इत्युक्त्वा तं विमुच्याशु गतास्ते मेषरक्षका: ॥ ४८ ॥
मंत्रियों के ऐसे नीतियुक्त वचन सुन महाराज श्रेणिक का क्रोध शांत हो गया। कुछ समय पहले जो महाराज ब्राह्मणों को बिना विचारे ही निकालना चाहते थे। वह विचार उनके मस्तक से हट गया। अब उनके चित्त में ये संकल्प-विकल्प उठने लगे। यदि मैं यों ही ब्राह्मणों को निकाल
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