Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
अन्यायेन विना वित्तं परकीयं समाहरत् । सेवकानां नृपो वृत्ती विलुलोप स लोभयुक् ॥ ५७ ॥ नरं यथाकथंचिच्च दृष्ट्वा हंति च पापधीः । आचारानैक्यसंत्यक्तोऽनभिज्ञः क्षितिपालने ॥ ५८ ।। अन्यायवर्त्मवृत्तित्वं तस्य मत्वा च मंत्रिणः । इत्यालोचं व्यधुश्चित्ते राज्यरक्षणसिद्धये ॥ ५६ ।। अहो ! न वेत्त्ययं राज्यस्थिति लोभाकुलात्मकः । प्रतापत्यक्तसद्देहो वृषांशपरिवर्जितः ।। ६० ॥ कथं रक्षति सद्राज्यं लोपयन्भटवृत्तिकं । श्रेणिकोऽतः समाकार्यों मगधस्थितिहेतवे ॥ ६१ ।।
महाराज उपश्रेणिक के बाद रहा-सहा भी अधिकार राजा चलाती को मिल गया। महाराज उपश्रेणिक के समान वह भी मगध देश का महाराज कहा जाने लगा। किंतु राजनीति से सर्वथा अनभिज्ञ राजा चलाती ने सामंत मंत्री पुरवासी जनों से भली प्रकार सेवित होने पर भी राज्य में अनेक प्रकार के उपद्रव करने प्रारंभ कर दिये। कभी तो वह बिना ही अपराध के धनिकों के धन जब्त करने लगा। और कभी प्रजा को अन्य प्रकार के भयंकर कष्ट पहुँचाने लगा। जिनके आधार पर राज्य चल रहा था उन राजसेवकों की आजीविका भी उसने बंद कर दी। राज्य में इस प्रकार भयंकर अन्याय देख पुरवासी एवं देशवासी मनुष्य त्रस्त होने लगे। और खुले मैदान उनके मुख से ये ही शब्द सुनने में आने लगे-राजा चलाती बड़ा भारी पापी है। अन्यायी है, और राज्य-पालन करने में सर्वथा असमर्थ है। राजा का इस प्रकार नीच बर्ताव देख राजमंत्री भी दाँतों में उंगली दबाने लगे। राज्य को सँभालने के लिए उन्होंने अनेक उपाय सोचे कितु कोई भी उपाय कार्यकारी नजर न पड़े। अंत में विचार करते-करते उन्हें कुमार श्रेणिक की याद आई । याद आते ही चट उन्होंने सलाह की-राजा चलाती पापी, दुष्ट एवं राजनीति से सर्वथा अनभिज्ञ है। यह इतने विशाल राज्य को चला नहीं सकता। इसलिए कुमार श्रेणिक को यहाँ बुलाना चाहिए और किस रीति से उन्हें मगध देश का राजा बनाना चाहिए ।।५६-६१।।
इति चित्ते विचित्याशु मंत्रिणो दूतमुत्तमं । प्रेषयामासुराकार्य पत्रं दत्वातिगूढत: ।। ६२ ।। वेणातटं स वेगेन संप्राप्य वरलेखक ।
तस्मै ददौ त्वया शीघ्रमेतव्यमिति सूचनं ।। ६३ ।। __ समस्त पुरवासी एवं मंत्री आदिक कुमार के गुणों से भलीभाँति परिचित थे इसलिए यह उपाय सबको उत्तम मालूम हुआ। एवं तदनुसार एक दूत जो कि राज्य-कार्य में अति चतुर था,
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