Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
पर आँज लिया, एवं बिना देखे-भाले ही घर से भागी, तथा किसी स्त्री ने सिर के भूषण को गले में पहनकर, गले के भूषण को सिर में पहनकर ही कुमार को देखने के लिए दौड़ना शुरू कर दिया। और कोई स्त्री हार को कमर में पहनकर और करधनी को गले में डालकर ही दौड़ी। कोई स्त्री अपने काम में लग रही थी जिस समय सखियों ने उससे कुमार को देखने के लिए आग्रह किया तो वह एकदम भागी, जल्दी में उसे चोली के उल्टे-सीधे का भी ज्ञान नहीं रहा। वह उल्टी चोली पहनकर ही कुमार को देखने लगी। तथा कोई स्त्री तो कुमार को देखने के लिए इतनी बेसुध हो गई कि अपने बालक को रोता हुआ छोड़कर दूसरे बालक को ही गोद में लेकर भागी। तथा कोई स्त्री जो कि नितम्ब के भार से सर्वथा चलने के लिए असमर्थ थी दूसरी स्त्रियों के मुख से ही कुमार की तारीफ सुन अपने को धन्य समझा। कोई वृद्धा जो कि चलने के लिए सर्वथा असमर्थ थी, दूसरी स्त्रियों को कहने लगी कि ऐ बेटा! किसी रीति से मुझे भी कुमार के दर्शन करा दे मैं तेरा यह उपकार कदापि नहीं भूलंगी। तथा कोई-कोई स्त्री तो कुमार को देख ऐसी मत्त हो गई कि कुमार के दर्शन की फूल में दूसरी स्त्रियों पर गिरने लगी और जिस ओर कुमार की सवारी जा रही थी, बेसुध हो उसी ओर दौड़ने लगी। तथा किसी-किसी स्त्री की तो ऐसी दशा हो गई कि एक समय कमार को देख घर आकर भी वह कमार को देखने के लिए भागी। अनेक उत्तम स्त्रियाँ तो कुमार को देख ऐसा कहने लगी कि संसार में वह स्त्री धन्य है जिसने इस कुमार को जना है, और अपने स्तनों का दूध पिलाया है। तथा कोई-कोई ऐसा कहने लगी हे आले ! यह बात सुनने में आई है कि इन कुमार का विवाह वेणुतट नगर के सेठी इन्द्रदत्त की पुत्री नन्दश्री के साथ हो गया है। संसार में वह नन्दश्री धन्य है। तथा कोई-कोई यह भी कहने लगी कि कुमार श्रेणिक के संबंध से रानी नन्दश्री के अभय कुमार नाम का उत्तम पुत्र भी उत्पन्न हो गया है इत्यादि पुरवासी स्त्रियों के शब्द सुनते हुए कुमार श्रेणिक नीली-पीली ध्वजाओं तोरणों से शोभित राजमंदिर के पास जा पहुँचे ॥८३-१०६॥
मात्रादिकं प्रणम्याशु रेजे राजालिमंडितः । राजा राजितधामाऽसौ विनष्टप्रभुशात्रवः ॥११०॥ इतिवृषपरिपाकात् प्राप्त राज्यादिभूति,
निखिलजन सुमान्यो मानितानेकवृद्धा। अहितहतविलासो वासितानेकवासो ।
विशदनयविलासी भासितांगः स भाति ॥११॥
राजमंदिर में प्रवेश कर कुमार ने अपनी पूज्य माता आदि को भक्तिपूर्वक नमस्कार किया। तथा अन्य जो परिचित मनुष्य थे, उनको भी यथायोग्य मिले। कुछ दिन बाद मंत्रियों की अनुमतिपूर्वक कुमार का राज्याभिषेक किया गया। कुमार श्रेणिक अब महाराज श्रेणिक कहे जाने लगे। तथा अनेक राजाओं से पूजित, अतिशय प्रतापी, समस्त शत्रुओं से रहित, महाराज श्रेणिक, मगध देश का नीतिपूर्वक राज्य करने लग गये। इस प्रकार अपने पूर्वोपार्जित धर्म के माहात्म्य से राज्य-विभूति को पाकर समस्त जनों से मान्य अनेक उत्तमोत्तम गुणों से भूषित,
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