Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रेणिक पुराणम्
नीतिपूर्वक राज्य चलानेवाले, अतिशय दैदीप्यमान शरीर के धारक, महाराज श्रेणिक अति आनंद को प्राप्त हुए ॥११०-१११।।
समस्ति पूर्वं वणिजां गृहोदरे स्थितिः
प्रणष्टाखिल दुःखविधौ । तथा वराज्यं क्व च तस्य भूपते
रहो विलासः सुकृतस्य दृश्यतां ।।११२।। धर्माद्धीधन संगमोनर भुवां धर्मात्कुले च, धर्माद्भ तिरनाद्यनंत सहिता धर्मात्सुराज्ये स्थितिः । धर्मान्नाकमहेंद्रता शुभगता धर्मात्सुखं शाश्वतम् धर्मात्सुंदर पुत्रसंतति रहो मत्वा कुरुध्वं वृषम् ॥११३॥
जीवों का संसार में यदि परम मित्र है तो धर्म है। देखो कहाँ तो महाराज श्रेणिक को राजगृह नगर छोड़कर सेठी इन्द्रदत्त के यहाँ रहना पड़ा था और कहाँ फिर उसी मगध देश के राजा बन गये । इसलिए उत्तम पुरुषों को चाहिए कि वे किसी अवस्था में धर्म को न छोड़ें क्योंकि संसार में मनुष्यों को धर्म से उत्तम बुद्धि की प्राप्ति होती है। धर्म से ही अविनाशी सुख मिलता है। देवेन्द्र आदि उत्तम पदों की प्राप्ति भी धर्म से ही होती है और धर्म की कृपा से ही उत्तम कुल में जन्म मिलता है ।।११२-११३।।
इति भेणिक भवानुबद्ध भविष्यत्पन्मनाभ तीर्थकरपुराणे भट्टारक श्रीशुभचंद्राचार्य विरचिते
क्षेणिकराज्यलाभवर्णनं नाम पंचमः सर्गः ॥५॥
इस प्रकार भविष्यकाल में होनेवाले भगवान श्री पदमनाभ के जीव महाराज श्रेणिक को राज्य की प्राप्ति बतलानेवाला भट्टारक श्री शुभचन्द्राचार्य विरचित
पांचवा सर्ग समाप्त हुआ।
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