Book Title: Shrenika Charitra
Author(s): Shubhachandra Acharya, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्रीशुभचन्द्राचार्यवर्येण विरचितम्
मार्गेऽन्यदा च गच्छंतौ श्रमहान्यस्थितौ वरौ । वृक्षाधः श्रेणिकस्तावत् पाणं छत्रमकल्पयत् ॥१६॥ मस्तकोपरि तच्छत्रं कृत्वा तस्थौ महामनाः । संवीक्ष्य चिंतयामासोरुव्याश्चति स्वमानसे ॥१६६।। दधते तापशांत्यर्थं छत्रमन्ये विचक्षणाः । आतपत्रं वितापेऽयं धत्त किं नहि मूर्खता ॥१६७।।
इस प्रकार विचार करते-करते सेठी इन्द्रदत्त फिर कुमार श्रेणिक के पीछे-पीछे चले। कुछ दूर चलकर उन्होंने अत्यंत शीतल छायायुक्त एक वृक्ष देखा मार्ग में धूप आदि से अतिशय श्रान्त कुमार श्रेणिक और सेठी इन्द्रदत्त दोनों ही उस वृक्ष के पास पहुँचे। कुमार श्रेणिक तो उस वृक्ष की छाया में अपने सिर पर छत्री तानकर बैठे और सेठी इन्द्रदत्त छत्री बंद कर। कुमार गहरा विचार करने लगे कि संसार में और और मनुष्य तो छत्री को धूप से बचने के लिए सिर पर लगाते हैं किन्तु यह कुमार अत्यंत शीतल वृक्ष की छाया में भी छत्री लगाये बैठा है यह तो बड़ा मूर्ख मालूम पड़ता है ॥१६५-१६७॥
अन्यदा नगरं रम्यं नानाजनसमाश्रितम् । दंतिघोटकपश्वाढ्यं दृष्ट्वा पप्रच्छ मागधः ॥१६८।। भो मामाऽयं शुभोग्रामो वसते चोद्वसोऽथवा । स्वकौशल्यं प्रकाश्येत्थं निर्जग्मतुस्ततोऽग्रतः ।।१६६।। एकं नरं शुभाकारं ताडयंतं स्वयोषितं । विलोक्य प्राह भो श्रेष्ठिन् श्रेणिको ज्ञानकोविद ॥१७०॥ ताड्यतेऽनेन बद्धावा मुक्तावा कथ्यतां द्रुतम् । ग्रथिलत्वेऽस्य च श्रेष्ठी श्रु त्वेति निश्चिकाय तत् ॥१७॥
इस प्रकार विचार करते-करते फिर भी सेठी इन्द्रदत्त कुमार के साथ आगे-आगे चले। आगे चलकर उन्होंने अनेक प्रकार के उत्तमाधम मनुष्यों से व्याप्त, अनेक प्रकार के हाथी, घोड़े आदि पशुओं से भरा हुआ अतिशय मनोहर, एक नगर देखा। नगर को देखकर कुमार श्रेणिक ने सेठी इन्द्रदत्त से पूछा कि हे मामा कृपा कर कहें कि यह उत्तम नगर बसा हुआ है कि उजड़ा हुआ? कुमार के इन वचनों को सुनकर सेठी इन्द्रदत्त ने उत्तर नहीं दिया किन्तु अतिशय चतुर कुमार श्रेणिक और इन्द्रदत्त फिर भी आगे को चल दिये आगे कहीं कुछ ही दूर जाकर उन्होंने एक अत्यंत सुन्दर पुरवासी मनुष्य को अपनी स्त्री को मारते हुए देखा, देखकर फिर कुमार श्रेणिक ने सेठी इन्द्रदत्त से प्रश्न किया कि हे श्रेष्ठिन् बताइये कि जिस स्त्री को यह सुन्दर मनुष्य मार रहा
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