________________
और यह मेरा द्वितीय काम है। भाषाके लिखते समय मेरा बराबर लक्ष्य नहिं रहा है । मुझे विश्वास है इस अनुवादमें मेरी बहुतसी त्रुटियां रह गई होंगी। इसलिये यह सविनय प्रार्थना है कि विज्ञपाठक मुझे उन त्रुटियोंकलिये क्षमा करें।
मित्रवर मूळचंदजी किसनदासजी कापडियाको परम धन्यवाद है कि जिनके उद्योगसे जैनधर्मको उन्नत करनेवाले बहुतसे काम हो रहे हैं और स्वयं भी आप रातदिन परार्थ काम करते रहते हैं। मुझे विश्वास है आगे भी कापडियाजी इसीप्रकार काम करते चले जायगे और जैनियोंमे उच्चादर्श बननेका दावा रक्खेंगे। काशी । वीर सं. २४४१ ।। विद्वत्कृपाभिलाषीमार्गशीर्ष शुक्ल ७ ।
गजाधरलाल ।
566
तात
KIR
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com