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१४ धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार प्रथम अधिकार
मंगलाचरण करके सद्-धर्मका स्वरूप-वर्णन सम्यग्दर्शनका स्वरूप आप्त, आगम और गुरुका स्वरूप सम्यग्दर्शनके आठ अंगोंका निरूपण आठों अंगोंमें प्रसिद्ध पुरुषोंके नामोंका उल्लेख सम्यक्त्वके २५ दोष बताकर इनके त्यागनेका उपदेश
सम्यक्त्वके भेद और उसके आठ गुणोंका वर्णन द्वितीय अधिकार
सम्यग्ज्ञानका स्वरूप और चार अनुयोगोंका वर्णन द्वादशाङ्ग श्रुतके पदोंकी संख्याका वर्णन
श्रुतज्ञानकी आराधना से ही केवलज्ञानको प्राप्ति होती है तृतीय अधिकार
सम्यक्त्वचारित्रके दो भेद और उनका स्वरूप-वर्णन श्रावकको सर्वप्रथम अष्टमूल धारण करना आवश्यक है मद्य-पानके दोष बताकर उसके त्यागका उपदेश मांस-भक्षणके दोष बताकर उसके त्यागका उपदेश मांस त्यागीके लिये चर्मस्थ घो, तेल, जलादि भी त्याज्य हैं
मधु-भक्षणके दोष बताकर उसके त्यागका उपदेश चतुर्थ अधिकार
श्रावकके बारह व्रतोंका निर्देश, अहिंसाणुव्रतका वर्णन अहिंसाणुव्रतके अतिचार सत्याणुव्रतका स्वरूप और उसके अतिचार अचौर्याणुव्रतका स्वरूप और उसके अतिचार ब्रह्मचर्याणुव्रतका स्वरूप और उसके अतिचार परिग्रहपरिमाण व्रतका स्वरूप परिग्रहपरिमाणवतके अतिचार रात्रिभोजनके दोष बताकर उसके त्याग का उपदेश मौनके गुण बताकर सात स्थानोंमें मौन-धारणका उपदेश भोजनके अन्तरायोंके त्यागका उपदेश जल-गालन की और उसके प्रासुक करनेकी विधि जलादि वस्त्र-गालित पीनेका विधान मनुस्मृति में भी है कन्दमूल, सन्धानक, नवनीत आदि अभक्ष्योंके त्यागका उपदेश दिग्व्रत और देशव्रत का स्वरूप और उनके अतिचार
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