Book Title: Shantisudha Sindhu
Author(s): Kunthusagar Maharaj, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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( शान्तिसुधासिन्धु )
करोति पश्चात्खलु भोजनादि, संकल्प्य योग्यं पचतीति बस्तु । श्रेष्ठो गृही स्यात्स च केवलं यः, स्वकुक्षिपुष्ट्यै पशुतः पशुः सः ॥ ४५ ॥
अर्थ- जो पुरुष जप तप ध्यान और दया आदि गुणोंसे सुशोभित रहता है, जो अपने आत्मजन्य आनंदसे तृप्त रहता है और जो अपने आम के है. आलीन रहता है ऐसे महा पुरुषको पात्र कहते हैं । उत्तम मध्यम जघन्यके भेदसे उस पात्रके तीन भेद हैं । इन तीनों भदोंमें से जो अपने यथायोग्य पदपर विराजमान है ऐसे पात्रको उसकी योग्यतानुसार नवधाभक्तिपूर्वक दान देकर जो भोजन पान करता है और पात्रदानका संकल्पकर ही जो योग्य शुद्ध आहार बनाता है वही पुरुष इस समस्त मंसारमें श्रेष्ठ गृहस्थ कहलाता है। जो पुरुष केबल पेट भरनेके लिए भोजन बनाता है वह पुरुष पशुसे भी अधम पशु कहलाता है ।
भावार्थ- रत्नत्रयको धारण करनेबाला पात्र कहलाता है । उस पात्रके तीन भेद हैं । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और पूर्ण सम्यक्चारित्रको धारण करनेवाला महाव्रती साध उत्तम पात्र कहलाता है । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और एकदेश-चारित्रको धारण करनेवासः अणुवती श्रावक मध्यमपात्र कहलाता है और सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और स्वरूपाचरणचारित्र को धारण करनेवाला श्रावक जघन्य पात्र कहलाता है । ये तीनों ही पात्र सम्यग्दर्शनरूपी आत्मजन्य प्रकाशके प्रकट होनेसे अपने आत्मजन्य आनन्दमें ही तृप्त रहते हैं, अपने ही आत्माके आधीन रहते हैं और अपनी अपनी योग्यताके अनुसार जप तप वा ध्यानमें लीन रहते हैं और समस्त जीवोंपर दया पालन करते हैं । इन तीनों प्रकारके पात्रोको उनकी योग्यतानसार दान देना चाहिए
तथा उनकी योग्यतानुसार ही उनको नवधा भक्ति करनी चाहिए प्रतिग्रह, उच्चस्थान, पादोदक, अर्चना,प्रणाम, मनशुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि और आहारशुद्धि यह नवधाभक्ति कहलाती है। चर्याके लिए आते हुए मनिको ' हे स्वामिन यहां ठहरिये आहार पानी शुद्ध है' इस प्रकार कहना प्रतिग्रह है। भीतर ले जाकर उनको ऊंचे आसनपर विराजमान करना उत्स्वस्थान है । उनके चरण धोकर मस्तकसे लगाना पादोदक है । अष्ट