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सन्मतितर्कप्रकरण-काण्ड - १
[ ऋजुसूत्रे बौद्धसंमतवादप्ररूपणायामक्षणिकवादपूर्वपक्ष: ]
ननु च क्षणक्षयपरिणामसिद्धावेवं वक्तुं युक्तम्, प्रमाणरहितस्य वचसो विपश्चितामनादरणीयत्वात् । न च क्षणक्षयावगमे प्रमाणव्यापारः ।
यतो न तावदध्यक्षं क्षणक्षयितां भावानामवगच्छत् प्रतीयते, परैरभ्युपगम्यते वा । यतः परैरन्त्यक्षणदर्शिनामेव 5 प्रत्यक्षतः क्षणिकताया निश्चयः प्रकल्प्यते, भ्रान्तिकारणसद्भावाद् न प्राक् । उक्तं च [प्र.वा. १-१०४] क्वचित्तदपरिज्ञानं सदृशापरसंभवात् । भ्रान्तेरपश्यतो भेदं मायागोलकभेदवत् । । इति । नाप्यनुमानात् तन्निश्चयः, अनुमानस्य लिङ्गबलादुपजायमानत्वात् । सामान्यलक्षणं च तस्य 'पक्षधर्मत्वम् सपक्षे सत्त्वम् विपक्षे चाऽसत्त्वमेव ' ( न्यायप्र.सू. ) निश्चितम् इति परैर्गीयते । तत्र पक्षधर्मतानिश्चयः 'प्रत्यक्षतोऽनुमानतो वा' [ ] इति वचनाद् यद्यपि प्रमाणद्वयनिबन्धन: सिद्ध:, तथापि सपक्षे सत्त्वं [ ऋजुसूत्रावतरितबौद्धमतप्ररूपणा - अक्षणिकवादिपूर्वपक्ष ]
पूर्वपक्ष :- पलालपर्याय और भस्मपर्याय इत्यादि में आपने भेद दर्शाया वह न्याययुक्त नहीं है । न्याययुक्त तभी कहा जा सकता है यदि वस्तुपरिणाम मात्र को प्रमाणपुरस्सर क्षणिक यानी क्षणभंगुर सिद्ध किया जाय । बगैर प्रमाण के बोलेजानेवाले वचनों के प्रति विद्वज्जनों को आदर नहीं होता । वस्तु के क्षण- विनाशमत के अंगीकार में किसी भी प्रमाण का सामर्थ्य नहीं है । कारण यह है
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ऐसा किसी को अनुभव नहीं है कि प्रत्यक्ष प्रमाण वस्तु की क्षणभंगुरता को भाँप लेता हो। क्षणिकवादी विद्वान् भी ऐसा मानते नहीं है । कारण यह है प्रत्यक्ष से क्षणिकता का (यानी वस्तुविनाश का ) निश्चय तो अन्त्यक्षण की पूर्वक्षणों में नहीं होता, क्योंकि तब स्थिरता के भ्रम करानेवाले वासनादि कारण मौजूद रहते हैं। प्रमाणवार्त्तिक ग्रन्थ में आचार्य धर्मकीर्त्तिने यही कहा है (9-908)
'समान अन्य (भाव) की ( त्वरित) उत्पत्ति के कारण, जादूगर के गोलक भिन्न भिन्न रहते हुए भी 20 जैसे भेद का दर्शन न होने से भ्रान्ति के जरिये कहीं पर क्षणिकता का अनुभव नहीं होता है । ( जैसे जादूगर अपनी बगल में एक गोली डाल कर फिर मुँह से निकाल कर दिखाता है तो यद्यपि बगलवाली और मुखनिर्गत गोली भिन्न भिन्न होने पर भी देखनेवाले को सादृश्य के कारण एक ही दीखती है यह देखनेवाले की भ्रान्ति है ।)
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[ अनुमान से क्षणभंगवाद का निश्चय अशक्य ]
प्रत्यक्ष से क्षणिकता की सिद्धि जैसे नहीं होती, अनुमान से भी उस की सिद्धि शक्य नहीं है, क्योंकि अनुमान का उत्थान लिङ्ग पर ही निर्भर है । क्षणिकता का साधक कोई लिङ्ग ही नहीं है । लिङ्ग का जो सामान्य लक्षण है वह क्षणिकतासाधक किसी भी पदार्थ में घट नहीं सकता । देखिये पक्षधर्मता, सपक्ष में वृत्तित्व, विपक्ष में अभाव ये तीन समुदित धर्म लिङ्ग का लक्षण है ऐसा क्षणिकवादी बौद्धों का अभिमत है । यद्यपि लिंग में 'प्रत्यक्ष से या अनुमान से' इस बौद्धवचनाधारित पक्षधर्मता का निश्चय 30 प्रमाणयुगल के द्वारा कर भी लिया जाय, फिर भी सपक्ष में सत्ता का सत्त्वादि हेतु में निश्चय करना अशक्य है। कारण, यहाँ सभी अर्थों में क्षणिकतासिद्धि अभिप्रेत होने से पक्ष बाहर कोई अर्थ ही नहीं
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