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मुंहबंधों की पंथ नि केवल मृषावादियों का.चलाया हुआ है। __ तथा वीसमें काव्य में सात ७ खोट है और इसका जो अर्थ लिखा है सो सर्व ही महा मिथ्या लिखा है एक अक्षर भी सच्चा नहीं ऐसे मृषावादीयों के धर्म को दया, धर्म कहते हैं ? ऐसा झूठ तो म्लेछ (अनार्य ) भंगी भी लिखते बोलते नहीं हैं।
तथा इक्कीसमें ( २१) काव्य में बारां (१२) खोट है तिस में ऐसा अधिकार है,वेष धारी जिन प्रतिमा का चढावाखाने वास्ते सावध काम का आदेश देते हैं,यह तो ठीक है परंतु जेठे ढुंढक ने जो अर्थ इस काव्य का लिखा है, सो झूठा निःकेवल स्वकपोल कल्पित है।
तथा तीसमा काव्य लिखा है तिस में ( १३) तेरां खोट हैं इसका अर्थ जेठ ने सर्व झूठ ही लिखा है संशय होवे तो वैयाकरण पंडितों को दिखा के निश्चय कर लेना।
पूर्वोक्त छी काव्य के लिखे अर्थों को देखने से सिद्ध होता है कि समकित सार ( शल्य) के कर्ता ने अपना नाम जेठ मल्ल नही किंतु झूठ मल्ल ऐसा सार्थक नाम सिद्ध कर दिया है अब विचार करना चाहियेकि जिस को पद पदसे झूठ बोलने का,उलटे रस्ते च लनेका,झूठे अर्थकरने का,और झूठे अर्थ लिखने का,भय नहीं तिस के चलाए पंथ को दया धर्म कहना औरतिसधर्म को सच्चामानना यह विना भारी कर्मी जीवोंके अन्य किसी का काम है ? ॥
जो ढुंढक पंथ की उत्पति जेठमल्ल ने लिखी है सो सर्व झूठी मिथ्या बुद्धि के प्रभाव से लिखी है,और भोले भव्य जीवों को फसाने वास्ते विना प्रयोजन,तिस में सूत्र की गाथा लिख मारी है परंतु इस ढुंढक पंथ की खरी उत्पत्ति श्री हीरकलश मुनि विरचित