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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
वनाथ के लांछन, गज और अश्व, अंकित हैं। मन्दिर : ४ की ग्याहरवीं शती की मर्ति में आसनों पर अभिनन्दन और सुमतिनाथ के लांछन, कपि और क्रोंच, चित्रित हैं। मन्दिर : १२ की पश्चिमी चहारदीवारी की दसवीं शती की मर्ति में आसनों पर शान्तिनाथ एवं सुपार्श्वनाथ के लांछन, मृग और स्वस्तिक, उत्कीर्ण हैं। स्वस्तिक-लांछन-युक्त जिनके मस्तक पर सर्पफण प्रदर्शित नहीं है। सर्पफणों के अभाव में जिन की पहचान शोतलनाथ से भी की जा सकती है, क्योंकि दिगम्बर परम्परा में शीतलनाथ का लांछन स्वस्तिक बताया गया है।
मन्दिर : १२ के उत्तर की चहारदीवारी की दसवीं-बारहवीं शती की कई द्वितीर्थी मूर्तियों में भी जिनों के साथ स्वतंत्र लांछन उत्कीर्ण हैं । दो उदाहरणों में लांछन वृषभ (ऋषभनाथ) और सिंह (महावोर) हैं। एक में लांछन, पद्म (प्रद्मप्रभ) और पुष्प (! नमिनाथ) है। अन्य चार उदाहरणों में लांछनों के अस्पष्ट होने के कारण जिनों की पहचान संभव नहीं है। मन्दिर : ८ की एक मूर्ति में लांछन सर्प (पार्श्वनाथ) और स्वस्तिक.(सुपा(श्वनाथ) है । पार्श्वनाथ एवं सुपार्श्वनाथ की इस द्वितीर्थी में अनेक मस्तकों पर सर्पफणों के छत्र को प्रदर्शित नहीं किया गया है। मन्दिर : १२ के प्रदक्षिणापथ की दसवीं शती की एक मर्ति में दाहिनी ओर की जिन आकृति के मस्तक पर सप्त सर्पफगों का छत्र (पाश्वनाथ) प्रदर्शित है, जबकि बायीं ओर की जिन आकृति लांछन रहित है। परिकर में चार लघु जिन आकृतियां उत्कीर्ण हैं।
सन्दर्भ सूची (१) उल्लेखनीय है कि खजुराहो और देवगढ़ की द्वितीर्थी मूर्तियों का अध्ययन स्वयं
लेखक ने किया है । इन स्थलों की सम्पूर्ण मूर्ति सम्पदा का विशद् अध्ययन लेखक ने उन स्थानों पर अपने शोध प्रबन्ध के लेखन के सन्दर्भ में जाकर किया है। (२) चंदा, रायबहादुर रामप्रसाद, मेडिवल इण्डियन स्कल्पचर इन द ब्रिटिश
___ म्यूजियम, लन्दन, १९३६. (३) प्रसाद, एच०, के०, जैन ब्रोन्जेज इन द पटना म्यूजियम, श्री महावीर जैन
विद्यालय गोल्डेन जूबिलो वाल्यूम, बम्बई १९६८, पृ० २८६ । (४) ६ मूर्तियां आदिनाथ मन्दिर से सटे संग्रहालय में संकलित हैं (के० २५, २६,
२८, २९, ३०, ३१), और शेष तीन क्रमशः शांतिनाथ मन्दिर, मन्दिर-३, _ और पुरातात्विक संग्रहालय, खजुराहो (क्रमांक १६५३) में सुरक्षित हैं। (५) मूर्ति शान्तिनाथ मन्दिर के आहाते में सुरक्षित है । एक जिन के आसन पर
गज लांछन (अजितनाथ) उत्कीर्ण है, किन्तु दूसरी आकृति का लांछन स्पष्ट नहीं
(६) केवल शान्तिनाथ मन्दिर की ११ वीं शती की मूर्ति में यक्ष-यक्षी अनुपस्थित हैं। (७) आदिनाथ मन्दिर से सटे संग्रहालय-के० २८-की मूर्ति । (८) मन्दिर : १२ के शिखर के समीप की नवों शती की मूर्ति में सामान्य पीठिका
पर खड़े तीर्थकरों के साथ उड्डीयमान मालाधरो के अतिरिक्त अन्य कोई प्रतिहार्य या चिह्न उत्कीर्ण नहीं है।
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