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मध्यकालीन गुजराती साहित्यनां हास्य-कथानको
साधुए शिवलिंग पासे मस्तक नमावतां शिवने साधुथी मोटो मानी मंदिरमा रोकाई. एटलामां एक कूतराए आवी लिंग पर पेशाब कर्यो, छतां शिवे एने कशुन करतां कन्या कृतराने उत्तम मानती एनी पाछळ गई. कृतरो एना मालिक कोई चांडाल युवानना पग चाटवा लाग्यो... कृतराथी उत्तम पात्र मानी चांडालकन्या अंते चांडाल युवानने वरी. या वायो ने नळियु खस्यु ___ मध्यकालीन वार्ताकारोए बुद्धिशक्ति के चातुर्य अने मूर्खतानां अतिरेकभर्या आलेखने हास्य सिद्ध कर्यु छे तेम क्वचित मानवसहज लोभ, लालच, स्वार्थ, ईर्ष्या जेवी वृत्तिने पण निमित्त बनावी छे. लोकनी गतानुगतिक वृत्तिनु हास्यमय चित्र श्रीगोकुलदास रायचुराए नोंघेल 'वांडोजीन शरामण'3' मां जोवा मळे छे. कोई कुंभारे गधेडाना बच्चाने पुत्र मानी उछेर्यो ने नाम राख्यु वांकोजी गधेडान मृत्यु थतां भोळा कुंभारे जोशीना कह्या प्रमाणे वांकोजीन शरामणु कयु ने मूछो मुंडावी. हजामने थयु के वांकोजी कोई राजपुत के भायात हशे, एथी एणे पण मूछो मुंडावी. हजाम पहोंच्यो तलाटी पासे. तलाटीए पण मूछ मुंडावी. ए क्रमे नगरशेठ, दिवान ने छेल्ले राजाए पण मूछ मुंडावी. छेल्ले राणीना प्रश्ने भंडो फूटयो.
लोलेलोलमां केवु चाल्यु जाय एर्नु अन्य कथानक राणीना साळानु छे. राजानी सवारी नीकळतां एक माणसे चिट्ठी लखी राजानी पालखीमा फेंकी.
'राजा तारा राजमां ज्यां जुओ त्यां पोलं पोल' गजाए नीचे लख्यु: 'पोल जो, स्यां पेसी जा' ने चिट्ठी पेला माणस तरफ फेंकी. पेला माणसे चिट्ठी उपाडी, वांची ने साचवी राखी. एणे मसाण पासे कोटडो बनावी मडदा पर कर लेवानु शरू कयु. कोई पूछे तो कहेतो; · राणीनों साळो छु ने मने आ अधिकार मल्यो छे.' लोको कशु पूछया गांच्या वगर कर आपवा लाग्या. एटलामां राजकुटुंबमां मरण थयु ने पेलाए कर माग्यो. आ वात राजाना काने आवी. राजाए कह्यु, ' अरे कोई होय तो मारो साळो होय. रागीनो साळो शी रीते ?' पेला माणसने राजा पासे हाजर करवामां आव्यो. एणे राजाने पेली चिट्ठी दर्शावी. पोलनी साबिती मळतां राजाए खुश थई इनाम आप्यु.
वांकोजीनु शरामण अने राणीना साळानां कथानकमां एक तरफ लोकोनी गतानुगतिक वृत्ति परत्वे सूक्ष्म उपहास छे तो बीजी तरफ राजा प्रत्येनी भयवृत्ति केटली दृढ अने व्यापक होय छे के कोई प्रजाजन एनो कोई तास करवा के आगळ पाछळनो, शक्याशक्यनो विचार करवा पण नथी रहेतु, एनो पण निर्देश छे. प्रसंगनी हारमाळा
खापरोचोर, विक्रमचरित्र, लंकाकांडीय कथानक, वांकोजीनु शरामण जेवां कथानकोमां एक साम्य नोंधपात्र छे ते ए के आ प्रकारनां कथानको प्रसंग के परिस्थिति वच्चे सपडायेलां पात्रोनी लांबी हारमाळा होय छे. कोई एक पात्रना कारणे अन्य कोई पात्र अमुक परिस्थितिमां मुकाय ने ए कई करे ए रीते अनेक पात्रोनी हारमाळा सर्जाय. समान परिस्थितिमां मुकायेला पात्रोनी गुंथाती आवी प्रसंगमाळा हास्यने जमावे छे. आवु खडखडाट हसावे एवं लोककथानु आ छेल्लु दृष्टांत : ३१ दालचिवडानो दायरो ले. गो. रायचुरा पृ० ५थी १५
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