Book Title: Sambodhi 1978 Vol 07
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
________________
श्रीरत्नाकरसूरि-शिष्य-विरचिता
श्रीवीरस्तुतिद्वात्रिंशिका
संपादक : पं. बाबुभाई सवचंद शाह आ कृति श्रीवीर परमात्मानी स्तुतिरूपे ३३ श्लोकमां रचायेल होवाथी तेनुं श्री वीरस्तुति द्वात्रिंशिका नाम आपवामां आवेल छे. तेना कर्ता श्री रत्नाकरसूरिशिष्य छे, तेम आ कृतिना ३३ मा श्लोक उपरथी जणाय छे.
आन संपादन श्री लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिर मां रहेल श्रीपुण्यविजयजी संग्रहनी प्रति नंबर ५४९ उपरथी करवामां आवेल छे. आ प्रति १६ मा शतकमां सुवाच्य अक्षरे लखायेली छे. प्रतिनु परिमाण २९.९४११.४ से.मी. छे. पत्र एक ज छे. बन्ने बाजु १६, १६ पंक्ति छे. एक पंक्तिमां सरेराश ६० अक्षर छे.
रत्नाकरसूरि नामना घणा आचार्यो १४ माथी १६मा शतकमां थयेल छे. तेथी प्रस्तुत स्तुतिना कर्ता कया रत्नाकरसूरिना शिष्य छे ते निर्णय करवो असंभवित जणाय छे. परंतु भाषाकोय रचना जोतां रत्नाकरपचीशीना कर्ता १४मा शतकमां थयेल श्रीरत्नाकरसूरिना शिष्य होय तेम संभवित लागे छे.'
एक ज प्रति उपरथी संपादन करेल होवाथी बेत्रण स्थळो शंकित रहेल छे. जे (?) प्रश्नार्थ चिह्न मूकीने जणावेल छे.
संक्षिप्त कृति होवा छतां तेमां भगवानना पांचे कल्याणकोनी गंथणी करी लेवामां आवेल छे. प्रथम बे लोकमां भगवाननो महिमा तथा पोतानी स्तुति करवानी अशक्ति जणावेल छे. त्रीजा चोथा श्लोकमां पोतानी लघुता, ५-६ श्लोकमां जन्माभिषेकना प्रसंगर्नु वर्णन, ७-८ प्रलोकमां भगवाननी बाळक्रीडामा अहिरूपधारी देवनो विजय तथा मुष्टिघातनो प्रसंग, ९ मा प्रलोकमां वीर नामनी सार्थकता, १०-१२ श्लोकमां प्रभुने शाळाए अभ्यास करवा मोकलवा, इन्द्रनु आगमन, व्याकरणनी उत्पत्ति, १३मा लोकमां गृहवासनो प्रसंग, १४ मा लोकमां वार्षिकदान, १५मा लोकमां दीक्षाभिमुख बनी धनादिकनो त्याग, १६मा लोकमां उपसर्गोमां रक्षण माटे इन्द्रनी प्रार्थनानो अस्वीकार, १७मा लोकमां संगमदेवनो प्रसंग, १८मा श्लोकमां प्रमादत्याग, १९,२०,२१ श्लोकमां देवांगनाओना उपसर्गनी निष्फळता, अमरेंद्रनो उपसर्ग, आन्तर वैरिओनो विनाश, २२मा प्रलोकमां कर्म-इन्धनना नाश वडे केवलज्ञाननी प्राप्ति, २३मा लोकमां भगवाननी वाणीनु सर्व जीवोनी भाषामा परिणमवं, २४मा लोकमां सिद्धान्तनी वाणीनी उत्पत्ति, २५ मां लोकमां उपदेशनी अद्भुतता, २६ मा लोकमां भगवाननी चिन्तामणि साथे सरखामणी, २७ मा लोकमां निर्वाण-महोत्सवनो महिमा, २८-२९ श्लोकमां शासननो महिमा, ३०मा लोकमां शासन-रक्षानी प्रार्थना, ३१-३२ लोकमां कलिकालनु वर्णन अने वीर भगवानना चरणमां मन स्थिर थाओ एवी अभ्यर्थना अने ३३मा लोकमां ग्रन्थकारनी प्रशस्ति तथा आशीर्वाद आपेल छे. ___आ रीते संक्षेपमां पण हृदयंगम शैलीथी वीर भगवाननु संपूर्ण जीवन आवी जाय छे. तेथी -आ कृति अद्भुत छे.
१. कृतिने अंते 'श्रीरत्नसिंहसूरिशिष्योदयशान्तिगणिनास्वपठनाय' एम लखेल छे. आथी एम जगाय छे के कृतिनुं माहात्म्य समजी उदयशांतिगणिए पोताना स्वाध्याय माटे आ कृति लखी हशे.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358